________________
अट्ठमं सण्णापयं. आठवाँ संज्ञा पद
उक्खेओ ( उत्क्षेप-उत्थानिका) - सातवें पद में जीवों के श्वासोच्छ्वास का और उसके विरह काल का प्रतिपादन किया गया। जीव आदि की पहचान किस प्रकार से होती है यह बात बताने के लिए आठवाँ "सण्णापयं" (संज्ञा पद) कहा जाता है। अर्धमागधी भाषा का शब्द "सण्णा" है जिसकी संस्कृत छाया होती है "संज्ञा''। संज्ञा शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार की गयी है- 'संज्ञानं संज्ञा आभोग इत्यर्थः यदिवा सञ्ज्ञायते अनया अयं जीव इति संज्ञा।' अर्थात् - सम् पूर्वक ज्ञा अवबोधने धातु से . संज्ञा शब्द बनता है। जिसका अर्थ है ज्ञान करना तथा यह "जीव" है ऐसा जिस ज्ञान से जाना जाय, उसे संज्ञा कहते हैं। वह संज्ञा दस प्रकार की है जिसका वर्णन आगे मूल पाठ से किया जा रहा है।
प्रज्ञापना सूत्र के सातवें पद में जीवों की श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति नाम कर्म और योग के आश्रित श्वासोच्छ्वास क्रिया उसके विरह काल तथा अविरहकाल का वर्णन करने के बाद सूत्रकार इस आठवें पद में वेदनीय और मोहनीय कर्म के उदय के आश्रित तथा ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीय कर्म के क्षयोपशम जन्य आहार आदि प्राप्त करने की क्रिया रूप दस प्रकार की संज्ञाओं का निरूपण करते हैं। इसका प्रथम सूत्र इस प्रकार हैं -
संज्ञाओं के भेद कइणं भंते! सण्णाओ पण्णत्ताओ?
गोयमा! दस सण्णाओ पण्णत्ताओ। तंजहा-आहार सण्णा, भय सण्णा, मेहुण सण्णा, परिग्गह सण्णा, कोह सण्णा, माण सण्णा, माया सण्णा, लोह सण्णा, लोय सण्णा, ओघ सण्णा॥३३७॥
कठिन शब्दार्थ - सण्णाओ - संज्ञाएं, लोय सण्णा - लोक संज्ञा, ओघ सण्णा - ओघ संज्ञा। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! संज्ञाएं कितने प्रकार की कही गई है ?
उत्तर - हे गौतम! संज्ञाएं दस प्रकार की कही गई हैं जो इस प्रकार हैं - १. आहार संज्ञा २. भय संज्ञा ३. मैथुन संज्ञा ४. परिग्रह संज्ञा ५. क्रोध संज्ञा ६. मान संज्ञा ७. माया संज्ञा ८. लोभ संज्ञा ९. लोक संज्ञा और १०. ओघ संज्ञा।
विवेचन - संज्ञा किसे कहते हैं?
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org