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छठा व्युत्क्रांति पद - परभविकायुष्य द्वार
मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं तथा आनत देवलोक से लेकर सर्वार्थसिद्ध तक के देव पर्याप्तक, संख्यात वर्ष की आयु वाले, कर्म भूमिज गर्भज संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले मनुष्यों में ही उत्पन्न होते हैं ।
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उपर्युक्त पांचवें व छट्ठे द्वार में जीवों के ५६३ भेदों को संक्षिप्त करके ११० भेदों में समाविष्ट किया गया है । वह इस प्रकार है- नरक गति के १४ भेदों को सात भेदों में, तिर्यंच गति के ४८ भेदों को ४६ भेदों में, मनुष्य गति के ३०३ भेदों को ३ भेदों में, देवगति के १९८ भेदों को ४९ भेदों में समाविष्ट किया गया है। इस प्रकार ये कुल मिलाकर १०५ भेद हुए । तिर्यंच गति में सन्नी स्थलचर व सन्नी खेचर के दो-दो भेद कर दिये गये हैं १. संख्यात वर्ष आयुष्य २. असंख्यात वर्ष आयुष्य ( युगलिक) । मनुष्य गति में ३०३ भेदों को अपेक्षा से ५ भेदों में भी समाविष्ट किया गया है १. संख्यात वर्ष आयुष्य कर्म भूमिज २. असंख्यात वर्ष आयुष्य कर्म भूमिज ३, अकर्म भूमिज मनुष्य ४. अन्तर द्वीपज मनुष्य और ५ सम्मूर्च्छिम मनुष्य । इस प्रकार तिर्यंच गति के पूर्वोक्त ४६ भेद और दो युगलिक मिलाकर ४८ भेद हुए । मनुष्य गति में तीन युगलिक सहित ६ भेद हुए । इस प्रकार सात नारकी, ४८ तिर्यंच, ६ मनुष्य, ४९ देवता ये कुल ११० भेद हुए । इन भेदों में नरक गति एवं देव गति के भेदों में पर्याप्त अपर्याप्त भेद नहीं करके समुच्चय भेदों को ही लिया गया है। देवगति
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४९ भेद इस प्रकार हैं- १० भवनपति, ८ वाणव्यंतर, ५ ज्योतिषी, १२ देवलोक, ९ ग्रैवेयक, ५ अनुत्तर विमान । इन ११० भेदों में एक सिद्ध गति का भेद मिलाने पर १११ भेद हो जाते हैं। इस प्रकार इन दो द्वारों में अपेक्षा से ५६३ जीवों के भेदों को संक्षिप्त करके ११० भेदों में तथा सिद्ध गति सहित १११ भेदों में समाविष्ट किया गया है।
॥ छठा द्वार समाप्त ॥
सातवाँ पर भविकायुष्य द्वार
इणं भंते! कइ भागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति ?
गोयमा! णियमा छम्मासावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति । एवं असुरकुमारा .वि, एवं जाव थणियकुमारा ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! वर्तमान आयुष्य का कितना भाग शेष रहने पर नैरयिक परभव की आयु का बन्ध करते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! नैरयिक नियम से छह मास आयु शेष रहने पर परभव की आयु बांधते हैं । इसी प्रकार असुरकुमारों से लेकर स्तनितकुमारों तक का परभविक - आयुष्यबन्ध सम्बन्धी कथन करना चाहिए ।
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