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________________ २२० प्रज्ञापना सूत्र जइ गब्भवक्कंतिय मणुस्सेहिंतो उववजति किं कम्मभूमिगेहिंतो उववजंति कम्मभूमिगेहिंतो उववजंति, अंतरदीवगेहिंतो उववजंति? गोयमा! णो अकम्मभूमिगेहिंतो उववजंति, णो अंतरदीवगेहिंतो उववजंति, कम्मभूमिग गब्भवक्कंतिय मणुस्सेहितो उववजंति।। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! यदि आणत देवलोक के देव गर्भज मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं ? या अकर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं या अन्तरद्वीपज गर्भज मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं ? उत्तर - हे गौतम! आणत देवलोक के देव कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं किन्तु अकर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं और अन्तरद्वीपज गर्भज मनुष्यों से भी आकर उत्पन्न नहीं होते हैं। जइ कम्मभूमग गब्भवक्कंतिय मणुस्सेहितो उववजंति किं संखिजवासाउएहितो उववजंति, असंखिजवासाउएहिंतो उववजंति? गोयमा! संखिजवासाउएहिंतो उववजंति, णो असंखिजवासाउएहिंतो उववजंति। ... भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! यदि आणत देवलोक के देव कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से आकर : उत्पन्न होते हैं तो क्या संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं या .... असंख्यातवर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं ? __उत्तर - हे गौतम! आणत देवलोक के देव संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं किन्तु असंख्यातवर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से आकर उत्पन्न नहीं होते। जइ संखिजवासाउयकम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय मणुस्सेहिंतो उववजति किं पज्जत्तएहिंतो उववजंति, अपजत्तएहिंतो उववजंति? गोयमा! पज्जत्तएहितो उववजंति, णो अपजत्तएहिंतो उववजति। . भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! आणत देवलोक के देव यदि संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या पर्याप्तकों से आकर उत्पन्न होते हैं या अपर्याप्तकों से उत्पन्न होते हैं ? उत्तर - हे गौतम! आणत देवलोक के देव पर्याप्तक संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं किन्तु अपर्याप्तक संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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