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छठा व्युत्क्रांति पद - कुतो द्वार
इसी प्रकार सौधर्म और ईशान कल्प के वैमानिक देवों के उपपात के विषय में कहना चाहिये । इसी प्रकार सनत्कुमार देवों के उपपात के विषय में भी कहना चाहिये । विशेषता यह है कि ये असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले अंकर्म-भूमिकों को छोड़ कर उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार सहस्रार कल्प तक के देवों का उपपात कहना चाहिये ।
विवेचन - पहले देवलोक में पन्द्रह कर्म भूमिज तीस अकर्म भूमिज और पांच संज्ञी तिर्यंच इस प्रकार पचास भेद के जीव आकर उत्पन्न होते हैं। दूसरे देवलोक में पन्द्रह कर्म भूमिज, बीस, अकर्म भूमिज (हेमवत और हैरणयवत क्षेत्र को छोड़कर) और पांच संज्ञी तिर्यंच के पर्याप्त ये चालीस भेद के जीव आकर उत्पन्न होते हैं। तीसरे से आठवें देवलोक तक पन्द्रह कर्म भूमिज मनुष्य और पांच संज्ञी तिर्यंच के पर्याप्त इस प्रकार बीस भेद के जीव आकर उत्पन्न होते हैं ।
आणयदेवा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति किं णेरइएहिंतो उववज्जंति, पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिएहिंतो उववज्जंति, मणुस्सेहिंतो उववज्जंति, देवेहिंतो उववज्जंति ? गोयमा ! णो णेरइएहिंतो उववज्जंति, णो तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, मणुस्सेहिंतो उववज्जंति, णो देवेहिंतो उववज्जंति।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! आणत देव (नववें देवलोक के देव) कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं ? तिर्यंच पंचेन्द्रिय से मनुष्यों से, देव गति से आकर उत्पन्न होते हैं ?
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उत्तर - हे गौतम! आणत देव (नववें देवलोक के देव) नैरयिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते, तिर्यंच योनिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते, मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, देवों से आकर उत्पन्न नहीं होते । विवेचन - नववें देवलोक से लेकर सर्वार्थसिद्ध तक सिर्फ मनुष्यों से ही आकर उत्पन्न होते हैं । तिर्यंचों से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं ।
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जड़ मणुस्सेहिंतो उववज्जंति किं सम्मुच्छिन मणुस्सेहिंतो उववज्जंति, गब्भवक्कंतिय मस्सेहिंतो उववज्जंति ? .
गोवमा ! गब्भवक्कंतिय मणुस्सेहिंतो ववज्जंति, णो सम्मुच्छिम मणुस्सेहिंतो उववज्जंति ।
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भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! यदि आणत देवलोक के देव मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या सम्मूच्छिम मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं या गर्भज मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! गर्भज मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, किन्तु सम्मूच्छिम मनुष्यों से आकर उत्पन्न नहीं होते ।
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