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________________ छठा व्युत्क्रांति पद कुर्ती द्वार - उत्तर - हे गौतम! असुरकुमार देवों से यावत् स्तनितकुमार देवों से अर्थात् दस ही प्रकार के भवनवासी देवों से आकर उत्पन्न होते हैं । जड़ वाणमंतर देवेहिंतो उववज्जंति किं पिसाएहिंतो उववज्जंति जाव गंधव्वेहिंतो उववज्जंति ? २१३ गोयमा! पिसाएहिंतो वि उववज्जंति जाव गंधव्वेहिंतो वि उववज्जंति । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! यदि पृथ्वीकायिक जीव वाणव्यंतर देवों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या पिशाचों से यावत् गन्धर्वों से आकर उत्पन्न होते हैं ? उत्तर - हे गौतम! पिशाचों से यावत् गन्धर्वों तक सभी प्रकार के वाणव्यंतर देवों से आकर उत्पन्न होते हैं। जइ जोइसिय देवेहिंतो उववज्जंति किं चंद विमाणेहिंतो उववज्जंति जाव तारा विमाणेहिंतो उववज्जंति ?, गोयमा ! चंदविमाण जोइसिय देवेर्हितो वि उववज्जंति जाव तारा विमाण जोइसिय देवेहिंतो वि उववज्जंति । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव यदि ज्योतिषी देवों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या चन्द्रविमानवासी ज्योतिषी देवों से यावत् तारा विमानवासी ज्योतिषी देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? उत्तर - हे गौतम! चन्द्रविमानवासी ज्योतिषी देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं यावत् तारा विमानवासी ज्योतिषी देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं । जड़ वेमाणिय देवेहिंतो उववज्जंति ? किं कप्पोवग वेमाणिय देवेहिंतो उववज्जंति, कप्पाईय वेमाणिय देवेहिंतो उववज्जंति । गोयमा ! कप्पोवग वेमाणिय देवेहिंतो उववज्जंति, णो कप्पाईय वेमाणिय देवेहिंतो उववज्जति । - भावार्थ - प्रश्न हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव यदि वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं या कल्पातीत वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? Jain Education International उत्तर - हे गौतम! कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं किन्तुं कल्पातीत वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं । विवेचन - सौधर्म देवलोक से लेकर अच्युत देवलोक तक बारह देवलोकों के देव कल्पोपपन्न For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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