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________________ छठा व्युत्क्रांति पद - कुतो द्वार २०३ तिर्यंच योनिकों से उत्पन्न होते हैं किन्तु अपर्याप्तक संख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से उत्पन्न नहीं होते हैं। --- जइ मणुस्सेहिंतो उववजंति, किं सम्मुच्छिममणुस्सेहिं तो उववजंति, गब्भवक्कंतिय-मणुस्सेहिंतो उववजंति? गोयमा! णो सम्मुच्छिममणुस्सेहिंतो उववजंति, गब्भवक्कंतिय मणुस्सेहितो उववजंति। . - भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! सामान्य नैरयिक यदि मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं तो क्या सम्मूछिम मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं या गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं ? उत्तर - हे गौतम! सामान्य नैरयिक सम्मूछिम मनुष्यों से उत्पन्न नहीं होते, गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं। ___ जइ गब्भवक्कंतिय मणुस्सेहिंतो उववजंति, किं कम्मभूमिग गब्भवक्कंतियमणुस्सेहिंतो उववजंति, अकम्मभूमिग गब्भवक्कंतिय मणुस्सेहिंतो उववजंति, अंतरदीवग गब्भवक्कंतिय मणुस्सेहिंतो उववजंति? .. गोयमा! कम्मभूमिग गब्भवक्कंतिय मणुस्सेहिंतो उववजंति, णो अकम्मभूमिग गब्भवक्कंतिय मणुस्सेहिंतो उववजंति, णो अंतरदीवग गब्भवक्कंतिय मणुस्सेहितो उववजंति। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सामान्य नैरयिक यदि गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं तो क्या कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं या अकर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं या अन्तरद्वीपज गर्भज मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं ? उत्तर - हे गौतम! सामान्य नैरयिक कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं किन्तु अकर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न नहीं होते और न ही अन्तरद्वीपज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं। जइ कम्मभूमिग गब्भवक्कंतिय मणुस्सेहितो उववजंति, किं संखिज्जवासाउएहितो उववजंति, असंखिजवासाउएहिंतो उववजंति? गोयमा! संखिजवासाउय कम्मभूमिग गब्भवक्कंतियमणुस्सेहिंतो उववजंति, णो असंखिज्जवासाउय कम्मभूमिग गब्भवक्कंतिय मणुस्सेहितो उववजंति। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सामान्य नैरयिक यदि कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं तो क्या संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं या असंख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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