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________________ छठा व्युत्क्रांति पद - कुतो द्वार तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, परिसप्प थलयर पंचिंदिय - तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति ? गोयमा! चउप्पय थलयर पंचिंदिय तिरिक्खजोणिएहिंतो वि उववज्जंति, परिसप्प थलयर पंचिंदिय तिरिक्खजोणिएहिंतो वि उववज्जंति । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सामान्य नैरयिक यदि स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से उत्पन्न होते हैं तो क्या चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से उत्पन्न होते हैं या परिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से उत्पन्न होते हैं ? उत्तर - हे गौतम! सामान्य नैरयिक चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से भी उत्पन्न होते हैं और परिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से भी उत्पन्न होते हैं । १९७ जइ चउप्पय थलयर पंचिंदिय तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति किं सम्मुच्छिमेहिंतो उववज्जंति, गब्भवक्कंतिएहिंतो उववज्जंति ? गोयमा ! सम्मुच्छिम चउप्पय-थलयर पंचिंदिय-तिरिक्खजोणिएहिंतो वि उववज्जंति, गब्भवक्कंतिय चउप्पय थलयर पंचिंदिय-तिरिक्खजोणिएहिंतो वि उववज्जंति । भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन् ! सामान्य नैरयिक यदि चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से उत्पन्न होते हैं तो क्या सम्मूच्छिम - चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से उत्पन्न होते हैं या गर्भज चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से भी उत्पन्न होते हैं ? उत्तर - हे गौतम! सामान्य नैरयिक सम्मूच्छिम चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से भी उत्पन्न होते हैं और गर्भज चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से भी उत्पन्न होते हैं । जइ सम्मुच्छिम चउप्पय थलयर पंचिंदिय - तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, किं पज्जत्तग सम्मुच्छिम चउप्पय थलयर पंचिंदिय - तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, अपज्जत्तग सम्मुच्छिम चउप्पय थलयर पंचिंदियतिरिक्ख - जोणिएहिंतो उववज्जंति ? गोयमा ! पज्जत्तग सम्मुच्छिम चउप्पय थलयर पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिएहिंतो उववज्र्ज्जति। णो अपज्जत्तग सम्मुच्छिम चउप्पय थलयर पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिएहिंतो उववज्जंति । भावार्थ प्रश्न - हे भगवन् ! सामान्य नैरयिक यदि सम्मूच्छिम चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योंनिकों से उत्पन्न होते हैं तो क्या पर्याप्तक सम्मूच्छिम चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच Jain Education International - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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