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छठा व्युत्क्रांति पद - कुतो द्वार
हैं तो क्या एकेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से उत्पन्न होते हैं, बेइन्द्रिय तिर्यंच योनिकों में से उत्पन्न होते हैं, तेइन्द्रिय तिर्यंच योनिकों में से उत्पन्न होते हैं, चउरिन्द्रिय तिर्यंच योनिकों में से उत्पन्न होते हैं या पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से उत्पन्न होते हैं ?
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उत्तर - हे गौतम! सामान्य नैरयिक एकेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से, बेइन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से, तेइन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से और चउरिन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते किन्तु पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं।
जइ पंचिंदिय तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति किं जलयर पंचिंदिय तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, थलयर पंचिंदिय तिरिक्खजोणिएंहिंतो उववज्जंति, खहयर पंचिंदिय तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति ?
गोयमा! जलयर पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिएहिंतो वि उववज्जंति, थलयर पंचिंदिय तिरिक्खजोणिएहिंतो वि उववज्जंति, खहयरपंचिंदिय-तिरिक्खजोणिएहिंतो वि उववज्जंति ॥ ३०३ ॥ भावार्थ - प्रश्न हे भगवन् ! नैरयिक (सामान्य नैरयिक) यदि पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से उत्पन्न होते हैं तो क्या वे जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से उत्पन्न होते हैं ? स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से उत्पन्न होते हैं या खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से उत्पन्न होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! सामान्य नैरयिक जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचों से भी आकर उत्पन्न होते हैं, स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से भी आकर उत्पन्न होते हैं और खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से भी आकर उत्पन्न होते हैं ।
विवेचन - पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों के पांच भेद हैं। यथा- जलचर, स्थलचर, खेचर, उरपरिसर्प और भुजपरिसर्प । किन्तु यहाँ पर मूल पाठ में तीन का ही उल्लेख किया है इसका कारण यह है कि उत्तराध्ययन सूत्र के छत्तीसवें अध्ययन में ये तीन भेद ही किये हैं- उरपरिसर्प और भुजपरिसर्प इन दोनों का समावेश स्थलचर में कर दिया गया है। क्योंकि ये दोनों स्थलचर विशेष प्रभेद ही हैं।
जड़ जलयर पंचिंदिय तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति किं सम्मुच्छिम जलयर पंचिंदिय तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, गब्भवक्कंतिय जलयर पंचिंदिय तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति ?
गोयमा ! सम्मुच्छिम जलयर पंचिंदिय तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, गब्भवक्कंदिय जलयर पंचिंदिय तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति ।
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