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प्रज्ञापना सूत्र
सव्वट्ठसिद्धग देवाणं भंते! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स संखिज्जइभागं॥२८८॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सर्वार्थसिद्ध देवों का उपपात विरह काल कितना कहा गया है?
उत्तर - हे गौतम! सर्वार्थसिद्ध देवों का उपपात विरह काल जघन्य एक समय का उत्कृष्ट पल्योपम का संख्यात भाग कहा गया है। .
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक देवों का उपपात विरह काल का वर्णन किया गया है, जो इस प्रकार है - वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और पहले दूसरे देवलोक में उत्पन्न होने का विरह जघन्य एक समय और उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त का है। तीसरे देवलोक से सर्वार्थ सिद्ध विमान में उत्पन्न होने का विरह जघन्य एक समय का है और उत्कृष्ट विरह तीसरे देवलोक का ९ दिन रात
और २० मुहूर्त का, चौथे देवलोक का १२ दिन १० मुहूर्त का, पांचवें देवलोक का साढ़े बावीस दिनरात का, छठे देवलोक का ४५ दिन का, सातवें देवलोक का ८० दिन का, आठवें देवलोक का १०० दिन का, नौवें दसवें देवलोक का संख्यात महीने का, ग्यारहवें बारहवें देवलोक का संख्यात वर्षों का, नवग्रैवेयक की नीचे की त्रिक का संख्यात सैंकड़ों वर्षों का, मध्यम त्रिक का संख्यात हजारों वर्षों का, ऊपर की त्रिक का संख्यात लाखों वर्षों का। विजय आदि चार अनुत्तर विमान का असंख्यात काल का और सर्वार्थसिद्ध का पल्योपम के संख्यातवें भाग का कहा गया है। ,
सिद्धाणं भंते! केवइयं कालं विरहिया सिझणाए पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं छम्मासा॥ २८९॥ भावार्थ-प्रश्न - हे भगवन्! सिद्धों का सिद्ध होने का उपपात विरह काल कितना कहा गया है?
उत्तर - हे गौतम! सिद्ध भगवन्तों का सिद्ध होने का उपपात विरह काल जघन्य एक समय का और उत्कृष्ट छह मास का कहा गया है।
विवेचन - उपपात शब्द का अर्थ है जन्म लेना। परन्तु यह निश्चित है कि जिसका जन्म होता है उसका मरण अवश्य ही होता है। सिद्ध भगवन्तों का मरण होता नहीं है इसलिए उनका उपपात (जन्म) भी नहीं होता है और मरण भी नहीं होता है। आगे के सब बोलों में "उववाएणं" शब्द दिया है जिसका अर्थ है उपपात। यहाँ आगमकारों ने सिद्ध भगवन्तों के लिये उववाएणं शब्द न देकर "सिझणाए" शब्द दिया है अतः इसका अर्थ है सिद्ध होना, सिद्धत्व को प्राप्त होना, आत्म स्वरूप में स्थित हो जाना क्योंकि सिद्ध भगवन्त सादि अनन्त हैं।
रयणप्पभा पुढवि णेरइया णं भंते! केवइयं कालं विरहिया उव्वट्टणाए पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं चउव्वीसं मुहुत्ता। .
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