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प्रज्ञापना सूत्र
उत्तर - हे गौतम! रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिक का उपपात एवं उद्वर्तना विरह काल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त का कहा गया है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिक का उपपात एवं उद्वर्तना विरह जघन्य एक . समय और उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त कहा है। पहले उपपात का विरह बारह मुहूर्त का कहा गया है तथा उद्वर्तना का काल भी बारह मुहूर्त का कहा गया है। वह समुच्चय नरक गति की अपेक्षा से बताया गया है। किन्तु यहाँ पर अलग अलग नरक पृथ्वियों की अपेक्षा से उपपात और उद्वर्तन विरहकाल बताया गया है। प्रत्येक नरक पृथ्वी में भिन्न-भिन्न काल का विरहकाल होते हुए भी जब समुच्चय नरक की पृच्छा होती है तब विरह काल १२ मुहूर्त से अधिक नहीं होता है अर्थात् १२ मुहूर्त के बाद तो किसी भी एक नरक में नये जीव का उपपात व नरक वाले जीव का तो उद्ववर्तन होता ही है। अतः समुच्चय नरक के विरहकाल एवं अलग-अलग पृथ्वियों के विरहकाल में भिन्नता होने पर भी कोई बाधा नहीं आती है।
सक्करप्पभा पढविणेरइया णं भंते! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं सत्त राइंदियाणि।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! शर्करा प्रभा पृथ्वी के नैरयिक कितने काल तक उत्पत्ति रहित और उद्वर्तना रहित कहे गये हैं?
उत्तर - हे गौतम! शर्करा प्रभा पृथ्वी के नैरयिक का उपपात विरह काल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट सात रात्रि दिन है।
वालुयप्पभा पुढवि णेरड्या णं भंते! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं अद्धमासं।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! वालुका प्रभा पृथ्वी के नैरयिक कितने काल तक उपपात रहित कहे गये हैं?
उत्तर - हे गौतम! वालुका प्रभा पृथ्वी के नैरयिक का उपपात विरह काल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अर्द्धमास (पन्द्रह दिन) का कहा गया है। .. पंकप्पभा पुढवि णेरइया णं भंते! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता?.
गोयमा! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं मासं।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पंकप्रभा पृथ्वी के नैरयिक कितने काल तक उत्पत्ति रहित कहे गये हैं?
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