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________________ पांचवां विशेष पद - जघन्य गुण काले द्विप्रदेशी स्कन्धों के पर्याय इसी प्रकार मध्यम गुण काले परमाणु पुद्गलों के पर्यायों-प्ररूपणा भी समझ लेनी चाहिए । विशेषता यह है कि स्वस्थान में षट्स्थानपतित होता है । विवेचन - परमाणु के लिए ऐसा कहा गया है। कारणमेव तदन्त्यं, सूक्ष्मो नित्यश्च भवति परमाणुः । एक रस वर्ण गन्धो, द्विस्पर्शः कार्यलिङ्गश्च ॥ १ ॥ अर्थ - द्वि प्रदेशी स्कन्ध से लेकर अनन्त प्रदेशी स्कन्ध तक सब स्कन्धों का अन्तिम कारण अर्थात् मूल कारण परमाणु है । अर्थात् सब स्कन्ध परमाणुओं से ही बनते हैं । परमाणु नित्य है और सूक्ष्म है। छद्मस्थों के दुष्टिगोचर नहीं होता है। एक परमाणु में एक वर्ण, एक गंध, एक रस और दो स्पर्श (शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष इन चार में से अविरोधी दो स्पर्श) वाला होता है। स्कन्ध रूप कार्य से परमाणुरूप कारण का अनुमान होता है। जघन्य गुण काले द्विप्रदेशी स्कन्धों के पर्याय जहण्णगुणकालगाणं भंते! दुपएसियाणं पुग्गलाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता । भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन् ! जघन्य गुण काले द्विप्रदेशिक स्कन्धों के पर्याय कितने कहे गए हैं ? उत्तर - हे गौतम! जघन्य गुण काले द्विप्रदेशिक स्कन्धों के पर्याय अनन्त कहे गए हैं। से केणट्टेणं भंते! एवं वुच्चइ जहण्णगुणकालगाणं दुपएसियाणं पुग्गलाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ? १५५ गोयमा ! जहण्णगुणकालए दुपएसिए जहण्णगुणकालगस्स दुपएसियस्स दव्वट्टयाए तुल्ले, पएसट्टयाए तुल्ले, ओगाहणट्टयाए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अब्भहिए। जइ हीणे पएसहीणे, अह अब्भहिए पएसअब्भहिए। ठिईए चउट्ठाणवडिए, काल वण्ण पज्जवेहिं तुल्ले, अवसेस वण्णाइ उवरिल्ल चउ फासेहि य छट्टाणवडिए । एवं उक्कोसगुणकालए वि । अजहण्णमणुक्कोसगुणकालए वि एवं चेव, णवरं सट्टाणे छट्टाणवडिए । एवं जाव दसपएसिए, णवरं पएसपरिवुड्डी, ओगाहणा तहेव । भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन् ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं कि जघन्यगुण काले द्विप्रदेशी स्कन्धों के पर्याय अनन्त हैं ? उत्तर - हे गौतम! एक जघन्य गुण काला द्विप्रदेशी स्कन्ध, दूसरे जघन्य गुण काले द्विप्रदेशी स्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है, अवगाहना की अपेक्षा से कदाचित् Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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