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________________ १५४ प्रज्ञापना सूत्र *****0000000000000◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆00000000000000000000 ...........................00000000◆◆◆◆◆◆◆◆000000 अजघन्य- अनुत्कृष्ट (मध्यम) स्थिति वाले अनन्त प्रदेशी स्कन्धों का पर्याय विषयक कथन भी इसी प्रकार कर देना चाहिए। विशेषता यह है कि स्थिति की अपेक्षा से चतुः स्थानपतित होता है। विवेचन प्रस्तुत सूत्र में जघन्य, उत्कृष्ट और मध्यम स्थिति वाले परमाणु- पुद्गलों तथा द्विप्रदेशिक, त्रिप्रदेशिक, यावत् संख्यात प्रदेशी, असंख्यात प्रदेशी और अनन्त प्रदेशी स्कन्धों के पर्यायों की प्ररूपणा की गई है। जघन्यस्थितिक संख्यात प्रदेशी स्कन्ध प्रदेशों की अपेक्षा से द्विस्थानपतित- यदि हीन हो तो संख्यात भाग हीन या संख्यात गुण हीन होता है, यदि अधिक हो तो संख्यात भाग अधिक या संख्यात गुण अधिक होता है। इसलिए यह द्विस्थानपतित है । जघन्य गुण काले आदि परमाणु पुद्गलों के पर्याय जहण्णगुणकालगाणं परमाणु पुग्गलाणं केवइया पज्जवा पणत्ता ? गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जघन्य गुण काले परमाणु पुद्गलों के पर्याय कितने कहे गए हैं ? उत्तर - हे गौतम! जघन्यगुण काले परमाणु पुद्गलों के पर्याय अनन्त कहे गए हैं। सेकेणट्टेणं भंते! एवं वुच्चइ जहण्णगुणकालगाणं परमाणु पुग्गलाणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता ? Jain Education International गोयमा ! जहण्णगुणकालए परमाणु पुग्गले जहण्णगुणकालयस्स परमाणु पुग्गलस्स दव्वट्टयाए तुल्ले, पएसट्टयाए तुल्ले, ओगाहणट्टयाए तुल्ले, ठिईए चाणase, कालवण्णपज्जवेहिं तुल्ले, अवसेसा वण्णा णत्थि । गंध रस फास पज्जवेहि य छट्ठाणवडिए। एवं उक्कोसगुणकालए वि । एवं जहण्णमणुक्कोसगुणकालए वि एवं चेव, णवरं सट्टाणे छट्टाणवडिए । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं कि जघन्यगुण काले परमाणुपुद्गलों के पर्याय अनन्त कहे गये हैं ? से उत्तर - हे गौतम! एक जघन्य गुण काला परमाणु पुद्गल दूसरे जघन्यगुण काले परमाणु पुद्गल द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, अवगाहना की अपेक्षा से तुल्य है, स्थिति की अपेक्षा से चतुः स्थानपतित है, काले वर्ण के पर्यायों की अपेक्षा से तुल्य है, शेष वर्ण नहीं होते तथा गन्ध, रस और (दो) स्पर्शों की अपेक्षा से 'षट्स्थानपतित है। इसी प्रकार उत्कृष्ट गुण काले परमाणु पुद्गलों के पर्यायों की प्ररूपणा समझ लेनी चाहिए। For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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