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पांचवां विशेष पद - जघन्य आदि अवगाहना वाले त्रिप्रदेशी पुद्गलों के पर्याय
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से तुल्य है किन्तु स्थिति की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, काले वर्ण के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, शेष वर्ण, गन्ध और रस के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है तथा शीतं, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। हे गौतम! इस कारण से मैं ऐसा कहता हूँ कि जघन्य अवगाहना वाले द्विप्रदेशिक पुद्गलों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं। उत्कृष्ट अवगाहना वाले द्विप्रदेशी पुद्गल-स्कन्धों के पर्यायों के विषय में भी इसी प्रकार कह देना चाहिए। अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम) अवगाहना वाले द्विप्रदेशी स्कन्ध नहीं होते।
विवेचन - जघन्य अवगाहना वाले द्विप्रदेशी स्कन्ध चार स्पर्शों की अपेक्षा से षट्स्थानपतितजघन्य अवगाहना वाले द्विप्रदेशी स्कन्धों में शीत, उष्ण, रूक्ष और स्निग्ध, ये चार स्पर्श ही पाए जाते हैं, इनमें शेष कर्कश, कठोर, हलका और भारी, ये चार स्पर्श नहीं पाए जाते। इनमें षट्स्थानपतित . हीनाधिकता पाई जाती है।
द्विप्रदेशी स्कन्ध में मध्यम अवगाहना नहीं होती - दो परमाणुओं का पिण्ड द्विप्रदेशी स्कन्ध कहलाता है। उसकी अवगाहना या तो आकाश के एक प्रदेश में होगी अथवा अधिक से अधिक दो आकाशप्रदेशों में होगी। एक प्रदेश में जो अवगाहना होती है, वह जघन्य अवगाहना है और दो प्रदेशों में जो अवगाहना है, वह उत्कृष्ट है। इन दोनों के बीच की कोई अवगाहना नहीं होती। अतएव मध्यम • अवगाहना का अभाव है।
जघन्य आदि अवगाहना वाले त्रिप्रदेशी पुद्गलों के पर्याय जहण्णोगाहणगाणं भंते! तिपएसियाणं पुग्गलाणं केवइया पजवा पण्णत्ता ? गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! जघन्य अवगाहना वाले त्रिप्रदेशी पुद्गलों के कितने पर्याय कहे गए हैं ?
उत्तर - हे गौतम! जघन्य अवगाहना वाले त्रिप्रदेशी पुद्गलों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं।
से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ जहण्णोगाहणगाणं तिपएसियाणं पुग्गलाणं अणंता पजवा पण्णत्ता?
* गोयमा! जहा दुपएसिए जहण्णोगाहणए, उक्कोसोगाहणए वि एवं चेव, एवं अजहण्ण-मणुक्कोसोगाहणए वि।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं कि जघन्य अवगाहना वाले त्रिप्रदेशी पुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं ?
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