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________________ १३२ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं कि परमाणुपुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं ? उत्तर - हे गौतम! एक परमाणुपुद्गल, दूसरे परमाणुपुद्गल से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है, अवगाहना की अपेक्षा से भी तुल्य है, किन्तु स्थिति की अपेक्षा से कदाचित् हीन है, कदाचित् तुल्य है, कदाचित् अभ्यधिक है। यदि हीन है, तो असंख्यात भाग हीन है, संख्यात भाग हीन है अथवा संख्यात गुण हीन है, अथवा असंख्यात गुण हीन है, यदि अधिक है, तो असंख्यात भाग अधिक है अथवा संख्यात भाग अधिक है या संख्यात गुण अधिक है अथवा असंख्यात गुण अधिक है। कृष्णवर्ण के पर्यायों की अपेक्षा से कदाचित् हीन है, कदाचित् तुल्य है और कदाचित् अधिक है। यदि हीन है तो अनन्त भाग हीन है या असंख्यात भाग- हीन है अथवा संख्यात भाग हीन है, अथवा संख्यात गुण हीन है, असंख्यात गुण हीन है या अनन्त गुण-हीन है। यदि अधिक है तो अनन्तभाग अधिक है, असंख्यात भाग अधिक है अथवा संख्यात भाग अधिक है। अथवा संख्यात गुण अधिक है, असंख्यात गुण अधिक है या अनन्त गुण अधिक है। इसी प्रकार काले वर्ण के सिवाय बाकी. के वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। स्पर्शो में शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष स्पर्शो की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। हे गौतम! इस हेतु से ऐसा कहा गया है कि परमाणुपुद्गलों के अनन्त पर्याय प्ररूपित हैं। प्रज्ञापना सूत्र विवेचन प्रस्तुत सूत्र में परमाणु पुद्गलों की पर्याय का वर्णन किया गया है। परमाणु द्रव्य और प्रत्येक द्रव्य अनन्त पर्यायों से युक्त होता है। एक परमाणु दूसरे परमाणु से द्रव्य प्रदेश और अवगाहना की अपेक्षा से तुल्य होता है, क्योंकि प्रत्येक परमाणु एक-एक स्वतंत्र द्रव्य है । वह निरंश ही होता है तथा नियमतः आकाश के एक ही प्रदेश में अवगाहन करके रहता है इसलिए इन तीनों की अपेक्षा से वह तुल्य है । किन्तु स्थिति की अपेक्षा से एक परमाणु दूसरे परमाणु से चतुः स्थानपतित हीनाधिक होता है, क्योंकि परमाणु की जघन्य स्थिति एक समय की और उत्कृष्ट असंख्यात काल की होती है अर्थात् - कोई पुद्गल परमाणु रूप पर्याय में कम से कम एक समय तक रहता है और अधिक से अधिक असंख्यात काल तक रह सकता है। इसलिए सिद्ध है कि एक परमाणु दूसरे परमाणु से चतुः स्थानपतित हीन या अधिक होता है तथा वर्ण, गन्ध, रस एवं स्पर्श, विशेषतः चतुःस्पर्शो की अपेक्षा परमाणु- पुद्गल में षट्स्थानपतित हीनाधिकता होती है। अर्थात् वह अनन्त भाग हीन, असंख्यात भाग हीन, संख्यात भाग हीन या संख्यात गुण हीन, असंख्यातगुण हीन होता है अथवा अनन्त भाग अधिक, असंख्यात भाग अधिक और संख्यात भाग अधिक अथवा संख्यात गुण अधिक, असंख्यात गुण अधिक, अनन्त गुण अधिक होता है। Jain Education International - • For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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