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- प्रज्ञापना सूत्र
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सम्पूर्ण एक ही द्रव्य रूप होने से यहाँ पर कल्पना से जो उसका अर्द्ध भाग, चतुर्थ भाग आदि होता है वह उसका 'देश' एवं उसका सूक्ष्मतम भाग ‘प्रदेश' शब्द से विवक्षित है। एक ही द्रव्य होने से उसके अलग-अलग (जुदे जुदे) स्वतंत्र विभाग नहीं होते हैं।
____ रूपी अजीव पर्याय के भेद रूवि अजीव पजवा णं भंते! कइविहा पण्णत्ता?
गोयमा! रूवि अजीव पजवा चउव्विहा पण्णत्ता। तंजहा - खंधा, खंध देसा, खंध पएसा, परमाणु पुग्गले।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! रूपी अजीव के पर्याय कितने प्रकार के कहे गये हैं ? ...
उत्तर - हे गौतम! रूपी अजीव के पर्याय चार प्रकार के कहे गये हैं। यथा - १. स्कन्ध । २. स्कन्ध देश ३. स्कन्ध प्रदेश और ४. परमाणु पुद्गल।
विवेचन - यहाँ पर रूपी अजीव पर्याय के भेदों में स्कन्ध देश, स्कन्ध प्रदेश, इस प्रकार भेद किये गये हैं। उनका आशय इस प्रकार समझना चाहिये - स्कन्ध के साथ में सम्बन्धित रहा हुआ ही. उसका अर्द्ध चतुर्थ आदि विभाग को स्कन्ध देश कहते हैं तथा स्कन्ध के साथ में सम्बन्धित (जुड़ा हुआ) सूक्ष्मतम विभाग को स्कन्ध प्रदेश कहते हैं। स्कन्ध से असम्बन्धित पुद्गल या तो स्वतंत्र स्कन्ध (कम से कम दो प्रदेशी होने पर) या परमाणु के रूप में कहा जाता है। इस प्रकार धर्मास्तिकाय के देश प्रदेशों से स्कन्ध के देश प्रदेशों में विशेषता बताने के लिए वहाँ पर स्कन्ध देश, स्कन्ध प्रदेश ये समास युक्त पद दिये गये हैं। रूपी पुद्गलों के द्रव्य अनन्त होने से अनन्त स्कन्ध, अनन्त देश और अनन्त प्रदेश हो जाते हैं।
तेणं भंते! किं संखिजा असंखिजा अणंता? गोयमा! णो संखिज्जा,णो असंखिज्जा, अणंता।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! क्या वे पूर्वोक्त रूपी अजीवपर्याय-स्कन्ध, स्कन्ध देश, स्कन्ध प्रदेश और परमाणु पुद्गल ये चार संख्यात हैं, असंख्यात हैं, अथवा अनन्त हैं ?
उत्तर - हे गौतम! वे पूर्वोक्त चतुर्विध (चारों प्रकार के) रूपी अजीव पर्याय संख्यात नहीं, असंख्यात नहीं, किन्तु अनन्त हैं। .
से केणद्वेणं भंते! एवं वुच्चइ-'णो संखिजा, णो असंखिज्जा, अणंता?'
गोयमा! अणंता परमाणुपुग्गला, अणंता दुपएसिया खंधा जाव अणंता दस पएसिया खंधा, अणंता संखिज पएसिया खंधा, अणंता असंखिज पएसिया खंधा,
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