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________________ पांचवां विशेष पद - अरूपी अजीव पर्याय के भेद अरूपी अजीव पर्याय के भेद अरूवि अजीव पज्जवा णं भंते! कइविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! अरूवि अजीव पज्जवा दसविहा पण्णत्ता । तंजहा धम्मत्थिकाए, धम्मत्थिकायस्स देसे, धम्मत्थिकायस्स पएसा, अहम्मत्थिकाए, अहम्मत्थिकायस्स देसे, अहम्मत्थिकायस्स पएसा, आगासत्थिकाए, आगासत्थिकायस्स देसे, आगासत्थिकायस्स पएसा, अद्धासमए ॥ २६७॥ भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन्! अरूपी अजीव के पर्याय कितने प्रकार के कहे गए हैं ? उत्तर - हे गौतम! अरूपी अजीव के पर्याय दस प्रकार कहे गये हैं - यथा १. धर्मास्तिकाय २. धर्मास्तिकाय का देश ३. धर्मास्तिकाय के प्रदेश ४. अधर्मास्तिकाय ५. अधर्मास्तिकाय का देश ६. अधर्मास्तिकाय के प्रदेश ७. आकाशास्तिकाय ८. आकाशास्तिकाय का देश ९. आकाशास्तिकाय के प्रदेश और १०. अद्धासमय-काल । विवेचन प्रस्तुत सूत्र में अरूपी अजीव के पर्यायों का निरूपण किया गया है। जिनके भेदों का स्वरूप इस प्रकार हैं- धर्मास्तिकाय धर्मास्तिकाय का असंख्यातप्रदेशों का सम्पूर्ण (अखण्डित) पिण्ड (अवयवी द्रव्य)। धर्मास्तिकाय देश - धर्मास्तिकाय का अर्द्ध आदि भाग । धर्मास्तिकाय प्रदेशधर्मास्तिकाय के निरंश (सूक्ष्मतम ) अंश। इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय आदि के तीन तीन भेद समझ लेना चाहिए। अद्धासमय अप्रदेशी काल द्रव्य । पर्यायों की प्ररूपणा के प्रसंग में यहाँ पर्यायों का कथन करना उचित था, उसके बदले द्रव्यों का कथन इसलिए किया गया है कि पर्याय और पर्यायी द्रव्य कथंचित् अभिन्न हैं, इस बात की प्रतीति हो । वस्तुतः धर्मास्तिकाय, धर्मास्तिकाय देश आदि पदों के उल्लेख से उन-उन धर्मास्तिकायादि के तीन तीन भेद तथा अद्धासमय के पर्याय ही विवक्षित हैं, द्रव्य नहीं । - Jain Education International - - - अरूपी अजीव पर्याय के भेदों में- धर्मास्तिकाय आदि द्रव्यों के दस भेद किये हैं । यहाँ पर द्रव्यों की अगुरुलघु आदि पर्यायों को ही उपचार से द्रव्य कह दिया है। वास्तव में तो यहाँ पर 'तात्स्थ्यात् तद्धपदेशः ' न्याय से पर्यायों की ही पृच्छा समझनी चाहिये । 'अरूपी अजीव पर्याय अनन्त होते हैं या नहीं ?' यद्यपि अरूपी अजीवों के भी अनन्त अगुरुलघु आदि पर्यायें होने से अनन्त पर्याय हो सकते हैं तथापि ये पर्यायें वचन गोचर नहीं होने से एवं श्रद्धा मात्र से ही गम्य होती है (छद्मस्थ इन्हें समझ नहीं सकता) अतः द्रव्य क्षेत्रादि से उनके भेद प्रभेद नहीं बताये हैं । अगुरुलघु पर्यायें तो सभी द्रव्यों की आधार भूत एवं उनके द्रव्यत्व को टिकाये रखती है । 'धम्मत्थिकायस्स देसे' यह असमासान्त (व्यस्त ) पद है। क्योंकि धर्मास्तिकाय आदि ३ द्रव्यों में For Personal & Private Use Only - १२९ www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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