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________________ पांचवां विशेष पद - जघन्य आदि अवगाहना वाले तिर्यंच पंचेन्द्रियों के पर्याय ही उल्लेख है । यद्यपि आगे कहा जाएगा कि कोई जीव विभंगज्ञान के साथ नरक से निकल कर संख्यात वर्षों की आयु वाले पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में उत्पन्न होता है, किन्तु वह महाकायवालों में ही उत्पन्न हो सकता है, अल्पकाय वालों में नहीं। इसलिए कोई विरोध नहीं समझना चाहिए। अवगाहना में षट्स्थानपतित होता ही नहीं है। ११३ मध्यम अवगाहना वाला पंचेन्द्रिय तिर्यच अवगाहना एवं स्थिति की दृष्टि से चतुःस्थानपतितचूंकि मध्यम अवगाहना अनेक प्रकार की होती है, अतः उसमें संख्यात - असंख्यात गुणहीनाधिकता हो सकती है तथा मध्यम अवगाहना वाला असंख्यात वर्ष की आयु वाला भी हो सकता है, इसलिए स्थिति की अपेक्षा से भी वह चतुः स्थानपतित हो सकता है। जहणठियाणं भंते! पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! जघन्य स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? उत्तर - हे गौतम! जघन्य स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं। से केणणं भंते! एवं वुच्चइ - ' जहण्णठिझ्याणं पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ?" ********..... गोयमा ! जहण्णठिइए पंचिंदिय तिरिक्खजोणिए जहण्णठिइयस्स पंचिंदिय तिरिक्खजोणियस्स दव्वट्टयाए तुल्ले, पएसट्टयाए तुल्ले, ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणवडिए, ठिईए तुल्ले, वण्ण-गंध-र - रस- फासपज्जवेहिं, दोहिं अण्णाणेहिं, दोहिं दंसणेहिं . छाणवडिए । Jain Education International उक्कोसठिइए वि एवं चेव, णवरं दो णाणा, दो अण्णाणा, दो दंसणा । अजहण्णमणुक्कोसठिइए वि एवं चेव, णवरं ठिईए चउट्ठाणवडिए । तिणि णाणा, तिणि अण्णाणा, तिण्णि दंसणा । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं कि 'जघन्य स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के अनन्त पर्याय कहे गये हैं ?" उत्तर - हे गौतम! एक जघन्य स्थिति वाला पंचेन्द्रिय तिर्यंच दूसरे जघन्य स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यंच से द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से भी तुल्य है, अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से तुल्य है तथा वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के पर्यायों, दो अज्ञान एवं दो दर्शनों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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