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________________ ९८ वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा से, तीन ज्ञान, तीन अज्ञान और तीन दर्शनों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है । इस कारण से हे गौतम! ऐसा कहा गया है कि 'जघन्यगुण काले नैरयिकों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं। ' प्रज्ञापना सूत्र से एएणट्टेणं गोयमा! एवं वुच्चइ -'जहण्णगुणकालगाणं णेरइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता'। एवं उक्कोसगुणकालए वि । अजहण्णमणुक्कोसगुणकालए वि एवं चेव, णवरं कालवण्णपज्जवेहिं छट्टाणवडिए । एवं अवसेसा चत्तारि वण्णा दो गंधा पंच रसा अट्ठ फासा भाणियव्वा ॥ २५९ ॥ इसी प्रकार उत्कृष्टगुण काले नैरयिकों के पर्यायों के विषय में भी समझ लेना चाहिए । इसी प्रकार मध्यम गुण काले नैरयिक के पर्यायों के विषय में जान लेना चाहिए। विशेष इतना ही है कि काले वर्ण के पर्यायों की अपेक्षा से भी षट्स्थानपतित होता है । इसी प्रकार काले वर्ण के पर्यायों की तरह शेष चारों वर्ण, दो गंध, पांच रस और आठ स्पर्श की अपेक्षा से भी समझ लेना चाहिए। 1 विवेचन - जिस नैरयिक में कृष्णवर्ण का सर्वजघन्य अंश पाया जाता है, वह दूसरे सर्वजघन्य अंश कृष्णवर्ण वाले के तुल्य ही होता है, क्योंकि जघन्य का एक ही रूप है, उसमें विविधता या हीनाधिकता नहीं होती । जहण्णाभिणिबोहियणाणीणं भंते! णेरड्याणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णाभिणिबोहियणाणीणं णेरड्याणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जघन्य आभिनिबोधिक ज्ञानी नैरयिकों के कितने पर्याय क गए हैं ? उत्तर - हे गौतम! जघन्य आभिनिबोधिक ज्ञानी नैरयिकों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं। सेकेणणं भंते! एवं वुच्चइ - ' जहण्णाभिणिबोहियणाणीणं णेरइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता'? गोयमा ! जहण्णाभिणिबोहियणाणी णेरइए जहण्णाभिणिबोहियणाणिस्स रइयस्स दव्वट्टयाए तुल्ले, पएसट्टयाए तुल्ले, ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणवडिए, ठिईए चउट्ठाणवडिए, वण्ण-गंध-रस- फास पज्जवेहिं छट्टाणवडिए, आभिणिबोहियणाण पज्जवेहिं तुले, सुयणाण पज्जवेहिं ओहिणाण पज्जवेहिं छट्टाणवडिए, तिहिं दंसणेहिं छट्ठाणवडिए । एवं उक्कोसाभिणिबोहियणाणी वि । अजहण्णमणुक्कोसाभिणि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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