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पांचवां विशेष पद - जघन्य आदि अवगाहना वाले नैरयिकों के पर्याय
क्योंकि 'प्रत्येक द्रव्य अनन्त पर्याय वाला होता है' इस न्याय से नैरयिक जीव द्रव्य एक होते हुए भी अनन्त पर्याय वाला हो सकता है। अनन्त पर्याय वाला होते हुए भी वह द्रव्य से एक है, जैसे कि अन्य नैरयिक एक-एक हैं। इसी प्रकार प्रत्येक नैरयिक जीव लोकाकाश प्रमाण असंख्यात प्रदेशों वाला होता है, इसलिए प्रदेशों की अपेक्षा से भी वह तुल्य है तथा अवगाहना की दृष्टि से भी तुल्य है, क्योंकि जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना का एक ही स्थान है, उसमें तरतमता-हीनाधिकता संभव नहीं है।
स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित - जघन्य अवगाहना वाले नैरयिकों की स्थिति में समानता का नियम नहीं है। क्योंकि एक जघन्य अवगाहना वाला नैरयिक १० हजार वर्ष की स्थिति वाला रत्नप्रभापृथ्वी में होता है और एक उत्कृष्ट स्थिति वाला नैरयिक सातवीं पृथ्वी में होता है। इसलिए जघन्य या उत्कृष्ट अवगाहना वाला नैरयिक स्थिति की अपेक्षा असंख्यात भाग या संख्यात भाग हीन अथवा संख्यात गुण या असंख्यात गुण हीन भी हो सकता है। अथवा असंख्यात भाग या संख्यात भाग अधिक अथवा संख्यात गुण या असंख्यात गुण अधिक भी हो सकता है। इसलिए स्थिति की अपेक्षा से नैरयिक चतुःस्थानपतित होते हैं।
कोई गर्भज संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव नैरयिकों में उत्पन्न होता है, तब वह नरकायु के वेदन के प्रथम समय में ही पूर्व प्राप्त औदारिकशरीर का परिशाटन करता है, उसी समय सम्यग्दृष्टि को तीन ज्ञान और मिथ्यादृष्टि को तीन अज्ञान उत्पन्न होते हैं। तत्पश्चात् अविग्रह से या विग्रह से गमन करके वह वैक्रियशरीर धारण करता है, किन्तु जो सम्मूछिम असंज्ञीपंचेन्द्रिय जीव नरक में उत्पन्न होता है, उसे उस समय विभंगज्ञान नहीं होता। इस कारण जघन्य अवगाहना वाले नैरयिक को भजना से दो या तीन अज्ञान होते हैं, ऐसा समझ लेना चाहिए।
उत्कृष्ट अवगाहना वाले नैरयिक स्थिति की अपेक्षा से द्विस्थानपतित - उत्कृष्ट अवगाहना वाले सभी नैरयिकों की स्थिति समान ही हो, या असमान ही हो, ऐसा नियम नहीं है। असमान होते हुए यदि हीन हो तो वह या तो असंख्यात भागहीन होता है या संख्यात भागहीन और अगर अधिक हो तो असंख्यात भाग अधिक या संख्यात भाग अधिक होता है। इस प्रकार स्थिति की अपेक्षा से द्विस्थानपतित हीनाधिकता समझनी चाहिए। यहाँ संख्यात गुण और असंख्यात गुण हीनाधिकता नहीं होती, इसलिए चतुःस्थानपतित संभव नहीं है, क्योंकि उत्कृष्ट अवगाहना वाले नैरयिक ५०० धनुष की ऊंचाई वाले सातवीं नरक में ही पाए जाते हैं और वहाँ जघन्य बाईस और उत्कृष्ट ३३ सागरोपम की स्थिति है। अतएव इस स्थिति में संख्यात-असंख्यात भाग हानि वृद्धि हो सकती है, किन्तु संख्यात-असंख्यात गुण हानि-वृद्धि की संभावना नहीं है।
उत्कृष्ट अवगाहना वाले नैरयिकों में तीन ज्ञान या तीन अज्ञान नियमतः होते हैं, भजना से नहीं म्योंकि उत्कृष्ट अवगाहना वाले नैरयिकों में सम्मूछिम असंज्ञीपंचेन्द्रिय की उत्पत्ति नहीं होती। अतः
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