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प्रज्ञापना सूत्र
अब्भहिए। जइ हीणे असंखिज भागहीणे वा संखिज भागहीणे वा संखिज गुणहीणे वा असंखिज्जगुणहीणे वा। अह अब्भहिए असंखिज भाग. अब्भहिए वा संखिज भाग अब्भहिए वा संखिज गुण अब्भहिए वा असंखिज गुण अब्भहिए वा। ठिईए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अब्भहिए। जइ हीणे असंखिज भागहीणे वा सखिज भागहीणे वा संखिज्ज गुणहीणे वा असंखिजगुणहीणे वा। अह अब्भहिए असंखिज्ज भाग अब्भहिए वा संखिज भाग अब्भहिए वा संखिज गुण अब्भहिए वा असंखिज्ज गुण अब्भहिए वा। वण्ण-गंध-रस-फास पजवेहिं, तिहिं णाणेहिं, तिहिं अण्णाणेहिं, तिहिं दंसणेहिं छहाणवडिए,
से एएणद्वेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-'अजहण्णमणुक्कोसोगाहणगाणं णेरइयाणं अणंता पजवा पण्णत्तम्। २५७॥
प्रश्न - हे भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि 'मध्यम अवगाहना वाले नैरयिकों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं?'
उत्तर - हे गौतम! मध्यम अवगाहना वाला एक नैरयिक, अन्य मध्यम अवगाहना वाले नैरयिक से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है, अवगाहना की अपेक्षा से कदाचित् हीन, कदाचित् तुल्य और कदाचित् अधिक है। यदि हीन है तो, असंख्यात भाग हीन है अथवा संख्यात भाग हीन है, या संख्यात गुण हीन है, अथवा असंख्यात गुण हीन है। यदि अधिक है तो असंख्यात भाग अधिक है अथवा संख्यात भाग अधिक है, अथवा संख्यात गुण अधिक है, या असंख्यात गुण अधिक है। स्थिति की अपेक्षा से कदाचित् हीन है, कदाचित् तुल्य है और कदाचित् अधिक है। यदि हीन है तो असंख्यात भाग हीन है, अथवा संख्यात भाग हीन है अथवा संख्यात गुण हीन है, या असंख्यात गुण हीन है। यदि अधिक है तो असंख्यात भाग अधिक है अथवा संख्यात भाग अधिक है, या संख्यात गुण अधिक है, अथवा असंख्यात गुण अधिक है। वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा से तथा तीन ज्ञानों, तीन अज्ञानों और तीन दर्शनों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। .
__ हे गौतम! इसी कारण से ऐसा कहा जाता है कि 'मध्यम अवगाहना वाले नैरयिकों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं।'
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में जघन्य, उत्कृष्ट और मध्यम अवगाहना आदि से युक्त नैरयिकों के पर्यायों का कथन किया गया है।
जघन्य एवं उत्कृष्ट अवगाहना वाला एक नैरयिक, दूसरे नैरयिक से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है,
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