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प्रज्ञापना सूत्र
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· वायुकायिकों के पर्याय वाउकाइयाणं भंते! केवइया पजवा पण्णत्ता? गोयमा! वाउकाइयाणं अणंता पजवा पण्णत्ता। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! वायुकायिक जीवों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? . उत्तर - हे गौतम! वायुकायिक जीवों के अनन्त पर्याय कहे गये हैं। से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ-वाउकाइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता'?
गोयमा! वाउकाइए वाउकाइयस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पएसट्ठयाए तुल्ले, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए, ठिईए तिट्ठाणवडिए वण्ण-गंध-रस-फास-मइअण्णाण-सुयअण्णाणअचक्खुदंसण पज्जवेहिं छट्ठाणवडिए॥२५३॥
प्रश्न - हे भगवन्! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि 'वायुकायिक जीवों के अनन्त पर्याय . कहे गये हैं?'
उत्तर - हे गौतम ! एक वायुकायिक, दूसरे वायुकायिक से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों को अपेक्षा से तुल्य है किन्तु अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है। स्थिति की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित है। वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श तथा मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान और अचक्षुदर्शन के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है।
वनस्पतिकायिकों के पर्याय वणस्सइकाइयाणं भंते! केवइया पजवा पण्णत्ता? . गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! वनस्पतिकायिक जीवों के कितने पर्याय कहे गए हैं? उत्तर - हे गौतम! वनस्पतिकायकि जीवों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं। से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ-वणस्सइकाइयाणं अणंता पजवा पण्णत्ता'?
गोयमा! वणस्सइकाइए वणस्सइकाइयस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पएसट्टयाए तुल्ले, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए, ठिईए तिट्ठाणवडिए, वण्ण-गंध-रस-फासमइअण्णाण-सुयअण्णाण-अचक्खुदंसण-पजवेहिं छट्ठाणवडिए, से एएणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-'वणस्सइकाइयाणं अणंता पजवा पण्णत्ता'॥२५४॥
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