SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम प्रज्ञापना पद - वायुकायिक जीव प्रज्ञापना वायुकायिक जीव प्रज्ञापना से किं तं वाउक्काइया ? वाउक्काइया दुविहा पण्णत्ता । तंजहा - सुहुम वाउक्काइया य बायर वाउक्काइया य ॥ २४ ॥ भावार्थ प्रश्न वायुकायिक जीव कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उत्तर - वायुकायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं । वे इस प्रकार हैं और २. बादर वायुकायिक | से किं तं सुहुम वाउक्काइया ? सुहुम वाउक्काइया दुविहा पण्णत्ता । तंजहापज्जत्तग सुहुम वाउक्काइया य अपज्जत्तग सुहुम वाउक्काइया । से तं सुहुम वाक्काइया ॥ २५ ॥ भावार्थ- प्रश्न सूक्ष्म वायुकायिक जीव कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उत्तर- सूक्ष्म वायुकायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं । वे इस प्रकार हैं - १. पर्याप्त सूक्ष्म वायुकायिक और २. अपर्याप्त सूक्ष्म वायुकायिक। इस प्रकार सूक्ष्म वायुकायिक जीव कहे गये हैं । से किं तं बायर वाउक्काइया ? बायर वाउक्काइया अणेगविहा पण्णत्ता । तंजहापाईणवाए, पडीणवाए, दाहिणवाए, उदीणवाए, उड्डवाए, अहोवाए, तिरियवाए, विदिसीवाए, वाउब्भामे, वाउक्कलिया, वायमंडलिया, उक्कलियावाए, मंडलियावाए, गुंजावाए, झंझावाए, संवट्टगवाए, घणवाए, तणुवाए, सुद्धवाए, जे यावण्णे तहप्पगारा । ते समासओ दुविहा पण्णत्ता । तंजहा - पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य । तत्थ णं जें ते अपज्जत्तगा ते णं असंपत्ता । तत्थ णं जे ते पज्जत्तगा एएसि णं वण्णादेसेणं, गंधादेसेणं, रसादेसेणं, फासादेसेणं सहस्सग्गसो विहाणाई, संखिज्जाई जोणिप्पमुह सयसहस्साइं । पज्जत्तग णिस्साए अपज्जत्तगा वक्कमंति, जत्थ एगो तत्थ णियमा असंखिज्जा | से तं बायर वाउक्काइया । से तं वाउक्काइया ॥ २६ ॥ 1 कठिन शब्दार्थ- पाईणवाए- प्राचीन वात- पूर्वी वायु (पूर्व दिशा से चलती हुई वायु) उड्डवाए - ऊर्ध्व वायु ऊँची दिशा में गमन करती हुई वायु, विदिसीवाए - विदिग्वायु (विदिशा से आती हुई हवा) वाउब्भामे - वातोद्भ्राम - अनवस्थित वायु, वाउक्कलिया - वातोत्कलिका - समुद्र की तरह वायु की तरंगें, वायमंडलिया - वातमंडलिका, उक्कलियावाए - उत्कलिकावात - अनेक तरंगों से मिश्रित वायु, मंडलियावाए - मंडलिकावात - मंडलाकार में उठती हुई वायु शुरू से ही प्रचुर मंडलिकाओं ************** Jain Education International - - - For Personal & Private Use Only - - ५७ ********** १. सूक्ष्म वायुकायिक www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy