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________________ ५६ प्रज्ञापना सूत्र ******** ************************************** पूज्य श्री आत्मारामजी महाराज ने दशवैकालिक के चौथे अध्ययन में तेजस्काय की यतना के अधिकार में पृ० १६१ पर लिखा कि - 'अग्नि के लक्षण प्रकाशकत्व उष्णत्व वर्णन किये हैं। बनावटी विद्युत में प्रकाशकत्व गुण दृष्टिगोचर होता हैं। उष्णत्व गुण प्रतीत नहीं होता इसीलिए विद्युत की अग्नि अचित्त प्रतीत होती है। पूज्य श्री ने उपरोक्त उल्लेख किस अनुभव के आधार से किया है यह समझ में नहीं आया। पूज्य श्री ने उसी जगह साधु की तेजोलेश्या को 'अचित्त अग्नि - तेजस्काय' लिखा है किन्तु यह बात भी भगवती सूत्र के ऊपर बताए हुए पांचवें प्रमाण से विपरीत है। क्योंकि वहाँ भगवती सूत्र में उसे अचित्त अग्नि नहीं बल्कि अचित्त प्रकाशक तापक पुद्गल लिखा हैं, अचित्त तेजस्काय नहीं। ८. पृथ्वी, अप्, वायु और वनस्पति में अपनी अपनी काय में, अपने ही भिन्न-भिन्न भेदों में भिन्नभिन्न गुण स्वभाव और लक्षण हैं, उसी प्रकार अग्नि में भी स्वभाव भिन्नता हो सकती हैं किन्तु बिजली अचित्त नहीं हो सकती है। ____९. जब शास्त्रों में हाथ से, पत्ते के टुकड़े से, पंखे से और वस्त्र पात्रादि से हवा की उदीरणा करने का निषेध है। हवा और अग्नि के आरम्भ को बहुत सावद्य दुर्गति का कारण और इनका आरम्भ करने से निर्ग्रन्थता से भ्रष्ट होना बताया है, तब तेउ, वायु के प्रबल आरंभक यंत्र (जो प्रत्यक्ष में पशु पक्षी आदि अनेक जीवों के घातक हैं) का उपयोग कैसे हो सकता है ? __ शास्त्रों में तेजस्काय के वर्णन में स्थान-स्थान पर बिजली का उल्लेख हैं। केवल सचित्त अग्निकाय के मृत कलेवर को अचित्त अग्निकाय मानने का स्पष्ट उल्लेख हैं। अग्निकाय और बिजली के समान गुण, लक्षण व स्वभाव को देखते बिजली सचित्त तेजस्काय ही हैं। हम तो कृत्रिम बिजली को सचित्त मानते ही हैं किन्तु पू० आत्मारामजी महाराज साहब ने बड़ी खोज के बाद बिजली को सचित्त स्वीकार किया है। उनका एक लेख संवत् १९९५ विक्रमी के ज्येष्ठ सुद पूनम को प्रकाशित रतलाम के निवेदन में हैं। कुछ संबंधित पंक्तियां इस प्रकार हैं। - 'विद्युत-बिजली जिसका प्रयोग आजकल रोशनी, पंखे चलाने के लिए तथा अन्य कई कामों में हो रहा हैं। उसके सचित्त या अचित्त होने के संबंध में जैन समाज में आजकल बड़ा वाद विवाद चल रहा है। कोई इसे सचित्त कोई इसे अचित्त कह रहे हैं। कई वर्ष हए, पंजाब के कतिपय मुनियों ने इस पर विचार किया तो यह निर्णय हुआ कि यह कृत्रिम बिजली अचित्त प्रतीत होती है। उसके अनुसार हमने भी सेठ ज्वाला प्रसाद जी के द्वारा प्रकाशित दशवकालिक सूत्र के अपने अनुवादों में ऐसी ही लिख दिया था। पश्चात् जब बिजली घरों में जाकर पुन: बड़ी खोज के साथ अन्वेषण किया गया तो यह निश्चित हुआ कि बिजली सचित्त हैं, अचित्त नहीं।' लेख की उपरोक्त पंक्तियों से बिजली का सचित्त तेउकाय होना सिद्ध होता हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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