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________________ ३९२ प्रज्ञापना सूत्र भावार्थ - हे भगवन्! सर्व जीवों का अल्पबहुत्व रूप महादंडक का वर्णन करूँगा - १ सबसे थोड़े गर्भज मनुष्य, २ उनसे मनुष्यनी संख्यात गुणी, ३ उनसे बादर तेउकाय पर्याप्तक असंख्यात गुणा, ४ उनसे पांच अनुत्तर विमान के देव असंख्यात गुणा, ५ उनसे ग्रैवेयक की ऊपर की त्रिक के देव संख्या गुणा, ६ उनसे मध्यम त्रिक के देव संख्यात गुणा, ७ उनसे नीचे की त्रिक के देव संख्यात गुणा, ८ उनसे बारहवें देवलोक के देव संख्यात गुणा, ९ उनसे ग्यारहवें देवलोक के देव संख्यात गुणा, १० उनसे दसवें देवलोक के देव संख्यात गुणा, ११ उनसे नौवें देवलोक के देव संख्यात गुणा १२ उनसे सातवीं नरक के ये असंख्यात गुणा, १३ उनसे छठी नरक के नेरइये असंख्यात गुणा, १४ उनसे आठवें देवलोक के देव असंख्यात गुणा, १५ उनसे सातवें देवलोक के देव असंख्यात गुणा, १६ उनसे पाँचवीं नरक के नेरइये असंख्यात गुणा, १७ उनसे छठे देवलोक के देव असंख्यात गुणा, १८ उनसे चौथी नरक के नेरइये असंख्यात गुणा, १९ उनसे पाँचवें देवलोक के देव असंख्यात गुणा, २० उनसे तीसरी नरक के नेरइये असंख्यात गुणा, २१ उनसे चौथे देवलोक के देव असंख्यात गुणा, २२ उनसे तीसरे देवलोक के देव असंख्यात गुणा, २३ उनसे दूसरी नरक के नेरइये असंख्यात गुणा, २४ उनसे संमूर्च्छिम मनुष्य असंख्यात गुण, २५ उनसे दूसरे देवलोक के देव असंख्यात गुणा, २६ उनसे दूसरे देवलोक की देवी संख्यात गुणी, २७ उनसे पहले देवलोक के देव संख्यात गुणा, २८ उनसे पहले देवलोक की देवी संख्यात गुणी, २९ उनसे भवनपति देव असंख्यात गुणा, ३० उनसे भवनपति देवी संख्यात गुणी, ३१ उनसे पहली नरक के नेरइये असंख्यात गुणा, ३२ उनसे खेचर तिर्यंच पुरुष असंख्यात गुणा, ३३ उनसे खेचर स्त्री संख्यात गुणी, ३४ उनसे थलचर पुरुष संख्यात गुणा, ३५ उनसे थलचर स्त्री संख्यात गुणी ३६ उनसे जलचर पुरुष संख्यात गुणा, ३७ उनसे जलचर स्त्री संख्यात गुणी, ३८ उनसे व्यन्तर देव संख्यात गुणा, ३९ उनसे व्यन्तर देवी संख्यात गुणी, ४० उनसे ज्योतिषी देव संख्यात गुणा, ४१ उनसे ज्योतिषी देवी संख्यात गुणी, ४२ उनसे खेचर नपुंसक ( गर्भज ) संख्यात गुणा, ४३ उनसे थलचर नपुंसक (गर्भज) संख्यात गुणा, ४४ उनसे जलचर नपुंसक ( गर्भज ) संख्यात गुणा, ४५ उनसे चौरिंद्रिय के पर्याप्तक संख्यात गुणा, ४६ उनसे पंचेन्द्रिय के पर्याप्तक विशेषाधिक, ४७ उनसे बेइंद्रिय के पर्याप्तक विशेषाधिक, ४८ उनसे तेइंद्रिय के पर्याप्तक विशेषाधिक, ४९ उनसे पंचेंद्रिय के अपर्याप्तक असंख्यात गुणा, ५० उनसे चौरेंद्रिय के अपर्याप्तक विशेषाधिक, ५१ उनसे तेइंद्रिय के अपर्याप्तक विशेषाधिक, ५२ उनसे बेइंद्रिय के अपर्याप्तक विशेषाधिक, ५३ उनसे प्रत्येक शरीरी बादर वनस्पतिकाय के पर्याप्तक असंख्यात गुणा, ५४ उनसे बादर निगोद के पर्याप्तक असंख्यात गुणा, ५५ उनसे बादर पृथ्वीकाय के पर्याप्तक असंख्यात गुणा, ५६ उनसे बादर अप्काय के पर्याप्तक असंख्यात गुण, ५७ उनसे बादर वायुकाय के पर्याप्तक असंख्यात गुणा, ५८ उनसे बादर तेउकाय के अपर्याप्तक असंख्यात गुणा, ५९ उनसे प्रत्येक शरीरी बादर वनस्पतिकाय के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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