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तीसरा बहुवक्तव्यता पद - महादंडक द्वार
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शीत स्पर्श की द्रव्य, प्रदेश और द्रव्य प्रदेश की अपेक्षा अल्पबहुत्व१. सबसे थोड़े अनन्त गुण शीत पुद्गल द्रव्य की अपेक्षा। २. एक गुण शीत पुद्गल द्रव्य की अपेक्षा अनन्त गुणा। ३. संख्यात गुण शीत पुद्गल द्रव्य की अपेक्षा संख्यात गुणा। ४. असंख्यात गुण शीत पुद्गल द्रव्य की अपेक्षा असंख्यात गुणा।
१. सबसे थोड़े अनन्त गुण शीत पुद्गल प्रदेश की अपेक्षा। २. एक गुण शीत पुद्गल अप्रदेश की अपेक्षा अनन्त गुणा। ३. संख्यात गुण शीत पुद्गल प्रदेश की अपेक्षा संख्यात गुणा।
४. असंख्यात गुण शीत पुद्गल प्रदेश की अपेक्षा असंख्यात गुणा। १. सबसे थोड़े अनन्त गुण शीत पुद्गल द्रव्य की अपेक्षा। २. अनन्त गुण शीत पुद्गल प्रदेश की अपेक्षा अनन्त गुणा। ३. एक गुण शीत पुद्गल द्रव्य और अप्रदेश की अपेक्षा अनन्त गुणा। ४. संख्यात गुण शीत पुद्गल द्रव्य की अपेक्षा संख्यात गुणा। ५. संख्यात गुण शीत पुद्गल प्रदेश की अपेक्षा संख्यात गुणा। ६. असंख्यात गुण शीत पुद्गल द्रव्य की अपेक्षा असंख्यात गुणा। ७. असंख्यात गुण शीत पुद्गल प्रदेश की अपेक्षा असंख्यात गुणा।
शीत स्पर्श का ये तीन अल्पबहुत्व कहा गया, उसी तरह उष्ण स्पर्श, स्निग्ध स्पर्श और रूक्ष स्पर्श का अल्पबहुत्व भी कह देना चाहिए। इस प्रकार आठ स्पर्श के २४ अल्पबहुत्व होते हैं। कुल ३+३+३+६०-६९ अल्पबहुत्व हुए।
॥छब्बीसवां पुद्गल द्वार समाप्त॥
२७. सत्ताईसवां महादंडक द्वार अह भंते! सव्वजीवप्पबहुं महादंडयं वण्णइस्सामि-सव्वत्थोवा गब्भवक्वंतिया मणुस्सा १, मणुस्सीओ संखिज्जगुणाओ २, बायरतेउकाइया पजत्तगा असंखिज्जगुणा ३, अणुत्तरोववाइया देवा असंखिजगुणा ४, उवरिमगेविजगा देवा संखिजगुणा ५, मज्झिमगेविज्जगा देवा संखिजगुणा ६, हिडिमगेविज्जगा देवः संखिजगुणा ७, अच्चुए कप्पे देवा संखिजगुणा ८, आरणे कप्पे देवा संखिजगुणा ९, पाणए कप्पे देवा संखिजगुणा १०, आणए कप्पे देवा संखिजगुणा ११, अहे सत्तमाए पुढवीए णेरड्या
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