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तीसरा बहुवक्तव्यता पद क्षेत्र द्वार
विसेसाहिया, तिरियलोए असंखिज्जगुणा, तेलोक्के असंखिज्जगुणा, उड्डलोए असंखिज्जगुणा, अहोलोए विसेसाहिया ।
खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा एगिंदिया जीवा अपज्जत्तगा उड्डलोयतिरियलोए अहोलोयतिरियलोए विसेसाहिया, तिरियलोए असंखिज्जगुणा, तेलोक्के असंखिज्जगुणा, उड्डलोए असंखिज्जगुणा, अहोलोए विसेसाहिया ।
खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा एगिंदिया जीवा पज्जत्तगा उड्डलोयतिरियलोए, अहोलोयतिरियलोए विसेसाहिया, तिरियलोए असंखिज्जगुणा, तेलोक्के असंखिज्जगुणा, उड्डलोए असंखिज्जगुणा, अहोलोए विसेसाहिया ॥ २०२ ॥
भावार्थ - क्षेत्र की अपेक्षा सबसे थोड़े एकेन्द्रिय जीव ऊर्ध्वलोक- तिर्यक्लोक में हैं, उनसे अधोलोक - तिर्यक्लोक में विशेषाधिक हैं, उनसे तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणा हैं, उनसे तीन लोक में असंख्यात गुणा हैं, उनसे ऊर्ध्वलोक में असंख्यात गुणा हैं और उनसे अधोलोक में विशेषाधिक है।
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क्षेत्र की अपेक्षा सबसे थोड़े अपर्याप्तक एकेन्द्रिय जीव ऊर्ध्वलोक- तिर्यक्लोक में हैं, उनसे अधोलोक - तिर्यक्लोक में विशेषाधिक हैं, उनसे तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणा हैं, उनसे तीन लोक में असंख्यात गुणा हैं, उनसे ऊर्ध्वलोक में असंख्यात गुणा हैं और उनसे अधोलोक में विशेषाधिक हैं ।
क्षेत्र की अपेक्षा सबसे थोड़े पर्याप्तक एकेन्द्रिय जीव ऊर्ध्वलोक- तिर्यक्लोक में हैं, उनसे अधोलोक - तिर्यक्लोक में विशेषाधिक हैं, उनसे तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणा हैं, उनसे तीन लोक में असंख्यात गुणा हैं, उनसे ऊर्ध्वलोक में असंख्यात गुणा हैं और उनसे भी अधोलोक में विशेषाधिक हैं।
विवेचन प्रस्तुत सूत्र में क्षेत्रानुसार एकेन्द्रिय जीवों का अल्पबहुत्व कहा गया है। एकेन्द्रिय, एकेन्द्रिय अपर्याप्तक एवं एकेन्द्रिय पर्याप्तक जीव सबसे थोड़े ऊर्ध्वलोक- तिर्यक्लोक नामक दोनों प्रतरों में है क्योंकि कई एकेन्द्रिय जीव वहाँ रहे हुए हैं और कई ऊर्ध्वलोक से तिर्यक्लोक में तथा तिर्यक्लोक से ऊर्ध्वलोक में उत्पन्न होने वाले जब मारणांतिक समुद्घात करते हैं तब वे पूर्वोक्त दोनों प्रतरों का स्पर्श करते हैं वे बहुत थोड़े होते हैं। उनसे अधोलोक - तिर्यक्लोक में विशेषाधिक है क्योंकि अधोलोक से तिर्यक्लोक में या तिर्यक्लोक से अधोलोक में ईलिका गति से उत्पन्न होने वाले एकेन्द्रिय उक्त दोनों प्रतरों का स्पर्श करते हैं। वहाँ रहने वाले एकेन्द्रिय भी ऊर्ध्वलोक में अधोलोक में अधिक होते हैं उनसे भी अधिक अधोलोक से तिर्यक्लोक में उत्पन्न होने वाले जीव पाये जाते हैं अतः इन दोनों प्रतरों में विशेषाधिक कहे गये हैं। उनसे तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणा हैं क्योंकि उक्त दोनों प्रतरों के क्षेत्र से तिर्यक्लोक का क्षेत्र असंख्यात गुणा अधिक है। उनसे तीन लोक में असंख्यात गुणा हैं क्योंकि बहुत से एकेन्द्रिय ऊर्ध्वलोक से अधोलोक में और अधोलोक से ऊर्ध्वलोक में उत्पन्न होते हैं
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