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तीसरा बहुवक्तव्यता पद - क्षेत्र द्वार
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२८. १०.....३५७
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लोक के प्रतरों का स्पर्श करते हैं। विद्याधर भी मेरु पर्वत पर जाते हैं उनके शुक्र रुधिर आदि पुद्गलों में बहुत सम्मूच्छिम मनुष्य उत्पन्न होते हैं। विद्याधर जब इन पुद्गलों के साथ जाते हैं तब सम्मूर्छिम मनुष्य भी इन दोनों प्रतरों का स्पर्श करते हैं। तिर्यक्लोक से ऊर्ध्वलोक में उत्पन्न होने वाले मनुष्य अन्त समय में मारणान्तिक समुद्घात कर आत्म-प्रदेशों को ऊर्ध्वलोक में फैला देते हैं उस समय भी दोनों प्रतरों का स्पर्श करते हैं इसलिए अधिक हैं। उनसे अधोलोक-तिर्यक्लोक में संख्यात गुणा हैं क्योंकि अधोलोक के गांवों में स्वभावतः बहुत मनुष्य हैं। तिर्यक्लोक से मनुष्य एवं अन्य काय के जीव मर कर जब इन अधोलोक के गांवों में गर्भज और सम्मूर्छिम मनुष्य रूप से उत्पन्न होते हैं तो अधोलोक तिर्यक्लोक के दोनों प्रतरों का स्पर्श करते हैं। इसी तरह अधोलोक के गांवों (सलिलावती विजय और वप्रावती विजय) से तथा नरक भवनपति आदि से तिर्यक्लोक में गर्भज और सम्मूर्छिम मनुष्य होकर उत्पन्न होते हैं तो इन दोनों प्रतरों को स्पर्श करते हैं। अधोलौकिक ग्रामों में कई मनुष्य स्वस्थान से भी इन दोनों प्रतरों का स्पर्श करते हैं अत: संख्यात गुणा हैं। उनसे ऊर्ध्वलोक में संख्यात गुणा हैं क्योंकि मेरु पर्वत पर विद्याधर कीड़ा निमित्त जाते हैं तथा चारण मुनि भी जाते हैं उनके शुक्र रुधिर आदि पुद्गलों में बहुत सम्मूछिम मनुष्य उत्पन्न हो सकते हैं अतः संख्यात गुणा हैं। उनसे अधोलोक में संख्यात गुणा हैं। क्योंकि अधोलोक में सलिलावती विजय और वप्रावती विजय है जो मनुष्यों का स्वस्थान है अतः संख्यात गुणा हैं। उनसे तिर्यक्लोक में संख्यात गुणा हैं क्योंकि तिर्यक्लोक का क्षेत्र संख्यात गुणा हैं। अढ़ाई द्वीप मनुष्य स्त्रियों का स्वस्थान हैं अतः संख्यात गुणा हैं।
खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा देवा उड्डलोए उड्डलोयतिरियलोए असंखिजगुणा, तेलोक्के संखिजगुणा, अहोलोयतिरियलोए संखेजगुणा, अहोलोए संखिजगुणा, तिरियलोए संखिज गुणा।
खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवाओ देवीओ उद्दलोए, उडलोयतिरियलोए असंखिजगुणाओ, तेलोक्के संखिजगुणाओ, अहोलोयतिरियलोए संखिजगुणाओ, अहोलोए संखिजगुणाओ, तिरियलोए संखिजगुणाओ॥२००॥
भावार्थ - क्षेत्र की अपेक्षा सबसे थोड़े देव ऊर्ध्वलोक में हैं उनसे ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणा हैं, उनसे त्रिलोक में संख्यात गुणा हैं, उनसे अधोलोक-तिर्यक्लोक में संख्यात गुणा हैं, उनसे अधोलोक में संख्यात गुणा हैं और उनसे भी तिर्यक्लोक में संख्यात गुणा हैं। "
क्षेत्र की अपेक्षा सबसे थोड़ी देवियाँ ऊर्ध्वलोक में हैं, उनसे ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणी हैं, उनसे त्रिलोक में संख्यात गुणी हैं, उनसे अधोलोक तिर्यक्लोक में संख्यात गुणी हैं, उनसे अधोलोक में संख्यात गुणी हैं और उनसे भी तिर्यक्लोक में संख्यात गुणी हैं।
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