SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 369
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५६ प्रज्ञापना सूत्र ******* तिर्यक्लोक में संख्यात गुणी हैं क्योंकि बहुत से नैरयिक आदि जीव समुद्घात के अलावा भी तिर्यक्लोक में तिर्यंच स्त्री रूप से उत्पन्न होते हैं और तिर्यक्लोक में रहे हुए जीव तिर्यंच योनिक स्त्री रूप से अधोलौकिक ग्रामों (सलिलावती विजय और वप्रा विजय) में उत्पन्न होते हुए अधोलोक तिर्यक्लोक के दोनों प्रतरों का स्पर्श करते हैं तथा कई तिर्यंचस्त्रियाँ इन दोनों प्रतरों में रहती हैं अतः ये संख्यात गुणी हैं। उनसे अधोलोक में संख्यात गुणी हैं क्योंकि अधोलौकिक ग्राम और समुद्र १००० योजन गहरे हैं उनमें ९०० योजन तिर्यक्लोक में और १०० योजन अधोलोक में है यहाँ मछली आदि बहुत सी तिर्यंच स्त्रियाँ हैं, यह उनका स्वस्थान हैं तथा क्षेत्र भी संख्यात गुणा हैं इसलिये संख्यात गुणी कही हैं उनसे तिर्यक्लोक में संख्यात गुणी हैं क्योंकि तिर्यक्लोक में असंख्यात द्वीप समुद्र हैं वहाँ तिर्यंच स्त्रियाँ बहुत हैं इसलिए संख्यात गुणी कही गयी है। यह तिर्यंच गति की अपेक्षा अल्पबहुत्व कहा गया है। खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा मणुस्सा तेलोक्के, उड्डलोयतिरियलोए असंखिज गुणा, अहोलोयतिरियलोए संखिज गुणा, उड्ढलोए संखिज गुणा, अहोलोए संखिज गुणा, तिरियलोए संखिज गुणा। खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवाओ मणुस्सीओ तेलोक्के, उड्डलोयतिरियलोए संखिजगुणाओ, अहोलोयतिरियलोए संखिजगुणाओ, उड्डलोए संखिजगुणाओ, अहोलोए संखिजगुणाओ, तिरियलोए संखिज्जगुणाओ॥१९९॥ भावार्थ - क्षेत्र की अपेक्षा सबसे थोड़े मनुष्य तीन लोक में (तीन लोक का स्पर्श करने वाले) हैं, उनसे ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणा हैं, उनसे अधोलोक-तिर्यक्लोक में संख्यात गुणा हैं, उनसे ऊर्ध्वलोक में संख्यात गुणा हैं, उनसे अधोलोक में संख्यात गुणा हैं, उनसे तिर्यक्लोक में संख्यात गुणा हैं। क्षेत्र की अपेक्षा सबसे थोड़ी मनुष्य स्त्रियाँ तीन लोक में हैं, उनसे ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में संख्यात गुणी हैं, उनसे अधोलोक-तिर्यक्लोक में संख्यात गुणी हैं, उनसे ऊर्ध्वलोक में संख्यातगुणी हैं, उनसे अधोलोक में संख्यात गुणी हैं और उनसे तिर्यक्लोक में संख्यात गुणी हैं। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में मनुष्य गति की अपेक्षा अल्पबहुत्व कहा गया है - मनुष्य और मनुष्य स्त्रियाँ सबसे थोड़ी त्रिलोक में हैं क्योंकि ऊर्ध्वलोक से अधोलोक (अधोलौकिक ग्रामों) में उत्पन्न होते हुए मारणांतिक समुद्घात करते हुए तथा केवली समुद्घात करते हुए वे तीनों लोक का स्पर्श करते हैं वे थोड़े हैं। उनसे ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में मनुष्य असंख्यात गुणा हैं और मनुष्य स्त्रियाँ संख्यात गुणी हैं क्योंकि ऊर्ध्वलोक से वैमानिक देव तथा एकेन्द्रियादि मनुष्य में उत्पन्न होते हुए दोनों ऊर्ध्वलोक तिर्यक् Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy