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________________ ३५२ ************************************************ खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा जीवा उड्डलोयतिरियलोए, अहोलोयतिरियलोए विसेसाहिया, तिरियलोए असंखिज्जगुणा, तेलुक्के असंखिज्जगुणा, उड्डलोए असंखिज्जगुणा, अहोलोए विसेसाहिया ॥ १९६॥ प्रज्ञापना सूत्र कठिन शब्दार्थ - खेत्ताणुवाएणं- क्षेत्रानुपात - क्षेत्र की अपेक्षा से, तेलुक्के - त्रेलोक्य- तीन लोक में । भावार्थ क्षेत्र की अपेक्षा १. सबसे थोड़े जीव ऊर्ध्वलोक- तिर्यक्लोक में हैं २. उनसे अधोलोक-तिर्यक्लोक में विशेषाधिक है ३. उनसे तिर्यक्लोक में असंख्यात गुणा हैं ४. उनसे तीन लोक में असंख्यात गुणा हैं ५. उनसे ऊर्ध्वलोक में असंख्यात गुणा हैं ६. उनसे अधोलोक में विशेषाधिक हैं । - Jain Education International - विवेचन प्रश्न क्षेत्र (खेत्त) किसको कहते हैं ? उत्तर - " क्षियन्ति निवसन्ति जीवा अजीवाश्च इति क्षेत्रम् । " अर्थात् संस्कृत में "क्षि निवासगत्योः " धातु है । इससे क्षेत्र शब्द बनता है। जिसका अर्थ है निवास करना और गति करना । निष्कर्ष यह हुआ कि जहाँ पर जीव और अजीव निवास करते हैं और गमनागमन आदि क्रिया करते हैं उसे क्षेत्र कहते हैं । यहाँ क्षेत्र शब्द से लोक विवक्षित है। लोक के तीन विभाग हैं-अधोलोक, तिर्यक्लोक (तिर्च्छा) और ऊर्ध्वलोक । परन्तु यहाँ सूत्रकार ने किसी अपेक्षा से लोक के छह विभाग कर दिये हैं । अधोलोक और ऊर्ध्वलोक के बीच में तिर्च्छा लोक आया हुआ है। वह अठारह सौ योजन का ऊँचाई वाला है। समतल भूमि भाग अर्थात् रुचक प्रदेशों से नौ सौ योजन नीचे और नौ सौ योजन ऊपर इस प्रकार अठारह सौ योजन की मोटाई वाला तिच्र्च्छा लोक है। तिर्च्छा लोक का सबसे नीचे का प्रतर अधोलोक के सब से ऊपर से प्रतर का स्पर्श करता है उसे अधोलोक तिर्यक्लोक यहाँ विवक्षित किया गया है। तिर्च्छा लोक का सबसे ऊपर का प्रतर ऊर्ध्व लोक के सब से नीचे के तर स्पर्श करता है इसलिये इसको यहाँ ऊर्ध्वलोक तिर्यक्लोक विवक्षित किया गया है। तथा तीनों लोकों की सम्मिलित विवक्षा की जाय तो त्रिलोक विवक्षित किया गया है। यह विवक्षा मरकर अन्य गति में जाते हुए जीव की अपेक्षा से की गयी है । प्रस्तुत सूत्र में क्षेत्र के छह भेद कर उनकी अपेक्षा से अल्पबहुत्व बताया गया है। छह भेद ये हैं१. ऊर्ध्वलोक २. अधोलोक ३. तिर्यक्लोक (तिरछा लोक) ४. ऊर्ध्वलोक- तिर्यक्लोक ५. अधोलोकतिर्यक्लोक और ६. त्रिलोक (तीन लोक) । - ********************************* २४. चौबीसवां क्षेत्र द्वार - प्रश्न- ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक किसे कहते हैं ? उत्तर सम्पूर्ण लोक चौदह रज्जु परिमाण है। उसके तीन विभाग हैं। For Personal & Private Use Only १. ऊर्ध्वलोक www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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