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*********rane..... प्रज्ञापना सूत्र
अनंत गुणा हैं, उनसे नील लेश्या वाले विशेषाधिक हैं, उनसे कृष्ण लेश्या वाले विशेषाधिक हैं और उनसे सलेशी-सामान्य लेश्या वाले विशेषाधिक हैं।
विवेचन - प्रश्न - लेश्या किसे कहते हैं ? उत्तर - "लिश्यते-श्लिष्यते कर्मणा सह आत्मा अनया सा लेश्या"
"कृष्णादिद्रव्यसाचिव्यात्परिणामो य आत्मनः।
स्फटिकस्येव तत्रायं, लेश्याशब्दः प्रवर्त्तते॥" अर्थ - जिसके द्वारा कर्म आत्मा के साथ चिपकाये जाते हैं।
अपने स्वरूप को रखती हुई सम्बन्धित लेश्या के द्रव्यों की छाया मात्र धारण करती है जैसे कि वैडूर्य मणी में लाल धागा पिरोने पर वह अपने नील वर्ण को रखती हुई धागे की लाल छाया को धारण करती है।
लेश्या के दो भेद हैं - द्रव्य लेश्या और भाव लेश्या। योगान्तर्गत कृष्णादि द्रव्य लेश्या कहलाती है। उस द्रव्य लेश्या के सहयोग से होने वाला आत्मा का परिणाम विशेष भाव लेश्या कहलाती है। इसके छह भेद हैं - १. कृष्ण २. नील ३. कापोत ४. तेजो ५. पद्म और ६. शुक्ल।
कषाय द्वार के बाद लेश्या द्वार कहते हैं - सबसे थोड़े शुक्ल लेश्या वाले हैं क्योंकि छठे देवलोक लान्तक से लेकर अनुत्तर विमान तक के वैमानिक देवों में और कितनेक गर्भज कर्म भूमि के संख्यात वर्ष के आयुष्य वाले मनुष्यों में तथा संख्यात वर्ष के आयुष्य वाले कितनेक तिर्यंच स्त्री पुरुषों में शुक्ल लेश्या संभव है, उनसे पद्म लेश्या वाले संख्यात गुणा हैं क्योंकि पद्म लेश्या सनत्कुमार, माहेन्द्र एवं ब्रह्मलोक कल्पवासी देवों में तथा बहुत से गर्भज कर्मभूमि के संख्यात वर्ष के आयुष्य वाले मनुष्य स्त्री पुरुषों में एवं संख्यात वर्ष के आयुष्य वाले गर्भज तिर्यंच स्त्री पुरुषों में होती है। सनत्कुमार आदि देव सभी मिल कर लान्तक आदि देवों से संख्यात गुणा होते हैं अतः शुक्ललेशी से पद्मलेशी संख्यातगुणा समझना चाहिए। उनसे तेजोलेश्या वाले संख्यात गुणा होते हैं क्योंकि सौधर्म, ईशान, ज्योतिषी देवों, कितनेक भवनपति, व्यन्तर, गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय, मनुष्य और बादर अपर्याप्तक एकेन्द्रियों में तेजोलेश्या होती है।
यद्यपि ज्योतिषी देव भवनवासी देवों तथा सनत्कुमार आदि देवों से असंख्यातगुणे होने से तेजोलेश्या वाले जीव असंख्यात गुणा कहने चाहिये तथापि पद्म लेश्या वालों से तेजोलेश्या वाले जीव संख्यात गुणा ही हैं। यह कथन केवल देवों की लेश्याओं की अपेक्षा नहीं कहा है अपितु समग्र जीवों की अपेक्षा कहा है। पद्म लेश्या वालों में देवों के अतिरिक्त बहुत से तिर्यंच भी सम्मिलित हैं इसी तरह तेजोलेश्या वालों में भी हैं अतएव उनसे तेजोलेश्या वाले संख्यातगुणे ही अधिक हो सकते हैं असंख्यात गुणा नहीं।
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