________________
३२६
प्रज्ञापना सूत्र
********************
********
जीवाजीवाभिगम सूत्र में स्त्रीवेद को कुंफर्म (छाणों की अग्नि) की उपमा दी गयी है। पुरुष वेद को तृण (घास फूस) की अग्नि की उपमा दी गयी है और नपुंसक वेद को नगर दाह की उपमा दी गयी है।।
___ योग द्वार के बाद अब वेद द्वार कहते हैं - सबसे थोड़े पुरुषवेद वाले हैं क्योंकि संज्ञी जीवों में तिर्यंच, मनुष्य और देवों को ही पुरुषवेद होता है उनसे स्त्रीवेद वाले संख्यात गुणा हैं क्योंकि जीवाभिगग सूत्र में कहा है कि - तिर्यंच योनिक पुरुषों से तिर्यंचयोनिक स्त्रियाँ तीन गुणी और तीन अधिक है, मनुष्यों से मनुष्य स्त्रियाँ २७ गुणी और २७ अधिक है और देवों से देवियाँ ३२ गुपी और ३२ अधिक है। उनसे अवेदक - वेद रहित अनंत गुणा हैं क्योंकि सिद्ध भगवान् अनन्त हैं उनसे नपुंसक वेद वाले अनन्त गुणा हैं क्योंकि सिद्धों से वनस्पतिकायिक अनन्त गुणा हैं, उनसे सामान्य वेद सहित विशेषाधिक है क्योंकि उसमें स्त्रीवेद वालों और पुरुष वेद वालों का समावेश होता है।
॥छठा वेद द्वार समाप्त॥
७. सातवां कषाय द्वार एएसि णं भंते! सकसाईणं कोहकसाईणं माणकसाईणं मायाकसाईणं लोहकसाईणं अकसाईणं च कयरे कयरेहितो अप्या वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा अकसाई, माणकसाई अणंतगुणा, कोहकसाई विसेसाहिया, मायाकसाई विसेसाहिया, लोहकसाई विसेसाहिया, सकसाई विसेसाहिया॥७ दारं॥१७४॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सकषायी, क्रोध कषायी, मान कषायी, माया कषायी, लोभ कषायी और अकषायी में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ?
उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े जीव अकषायी हैं, उनसे मान कषायी अनंतगुणा हैं, उनसे क्रोध कषायी विशेषाधिक हैं उनसे माया कषायी विशेषाधिक हैं, उनसे लोभ कषायी विशेषाधिक हैं, उनसे सकषायी विशेषाधिक हैं।
विवेचन - प्रश्न - कषाय किसको कहते हैं ?
उत्तर - कष्यन्ते, पीड्यन्ते, दुःखी भवन्ति प्राणिनो यस्मिन स कषः संसार इति। कषयस्य संसारस्य आयः लाभ: स कषाय। कषाया विद्यन्ते यस्य स कषायी। कषायै सह वर्तन्ते ते सकषाया।अथवा सकषायिणः।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org