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तीसरा बहुवक्तव्यता पद - काय द्वार
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विशेषाधिक है २७. उनसे अपर्याप्तक बादर वनस्पतिकायिक असंख्यात गुणा हैं २८. उनसे बादर अपर्याप्तक विशेषाधिक हैं २९. उनसे बादर जीव विशेषाधिक हैं ३०. उनसे अपर्याप्तक सूक्ष्म वनस्पतिकायिक असंख्यात गुणा हैं ३१. उनसे अपर्याप्तक सूक्ष्म जीव विशेषाधिक हैं ३२. उनसे पर्याप्तक सूक्ष्म वनस्पतिकायिक संख्यात गुणा हैं ३३. उनसे सूक्ष्म पर्याप्तक जीव विशेषाधिक हैं और ३४. उनसे भी सूक्ष्म जीव विशेषाधिक हैं।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में पर्याप्तक और अपर्याप्तक सूक्ष्म, सूक्ष्म पृथ्वीकायिक आदि और बादर, बादर पृथ्वीकाय आदि का शामिल पांचवाँ अल्पबहुत्व कहा गया है - सबसे थोड़े पर्याप्तक बादर तेजस्कायिक हैं क्योंकि वे आवलिका समयों का वर्ग करके उनसे कुछ समय कम आवलिका समयों से गुणित जितने समय होते हैं उतने प्रमाण हैं। उनसे पर्याप्तक बादर त्रसकायिक असंख्यात गुणा हैं क्योंकि वे एक प्रतर के अंगुल के संख्यातवें भाग प्रमाण में जितने खंड होते हैं उतने हैं। उनसे अपर्याप्तक बादर त्रसकायिक असंख्यात गुणा हैं। क्योंकि वे एक प्रतर के अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण में जितने खण्ड होते हैं उतने हैं। उनसे पर्याप्तक प्रत्येक बादर वनस्पतिकायिक, बादर निगोद, बादर पृथ्वीकायिक, बादर अप्कायिक और बादर वायुकायिक उत्तरोत्तर असंख्यात गुणा हैं जो कि प्रत्येक प्रतर के अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण में जितने खंड होते हैं उतने हैं फिर भी अंगुल के असंख्यातवें भाग के असंख्यात भेद होने से उत्तरोत्तर असंख्यात गुणा होने का कथन परस्पर विरुद्ध नहीं है। उनसे बादर तेजस्कायिक अपर्याप्तक असंख्यात गुणा हैं क्योंकि वे असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण है। उनसे अपर्याप्तक प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिक, बादर निगोद, बादर पृथ्वीकायिक, बादर अप्कायिक और बादर वायुकायिक उत्तरोत्तर असंख्यात गुणा हैं, अपर्याप्तक बादर वायुकायिक से अपर्याप्तक सूक्ष्म तेजस्कायिक असंख्यात गुणा हैं, उनसे अपर्याप्तक सूक्ष्म पृथ्वीकायिक, सूक्ष्म अप्कायिक और सूक्ष्म वायुकायिक उत्तरोत्तर विशेषाधिक हैं, उनसे पर्याप्तक सूक्ष्म तेजस्कायिक संख्यात गुणा हैं क्योंकि सूक्ष्म जीवों में अपर्याप्तक से पर्याप्तक सामान्य रूप से संख्यात गुणा हैं, उनसे पर्याप्तक सूक्ष्म पृथ्वीकायिक, सूक्ष्म अप्कायिक, सूक्ष्म वायुकायिक, उत्तरोत्तर विशेषाधिक हैं, उनसे अपर्याप्तक सूक्ष्म निगोद असंख्यात गुणा हैं क्योंकि वे बहुत बड़ी संख्या में सर्वलोक में हैं, उनसे पर्याप्तक सूक्ष्म निगोद संख्यात गुणा हैं क्योंकि सूक्ष्म में अपर्याप्तकों की अपेक्षा पर्याप्तक सामान्य रूप से सदैव संख्यात गुणा होते हैं जो कि इन सभी बादर पर्याप्तक तेजस्कायिक से पर्याप्तक सूक्ष्म निगोद तक सामान्य रूप से असंख्यात लोकाकाश के प्रदेश प्रमाण कहे गये हैं फिर भी असंख्यात के असंख्यात भेद होने से यहाँ असंख्यात गुणा विशेषाधिकपना या संख्यात गुणा कहा हैं वह विरुद्ध नहीं समझना चाहिए। पर्याप्तक सूक्ष्म निगोद से पर्याप्तक बादर वनस्पतिकायिक अनंत गुणा हैं क्योंकि एक एक बादर निगोद में अनंत जीव होते हैं अतः सामान्य रूप से बादर पर्याप्तक विशेषाधिक हैं क्योंकि उनके बादर पर्याप्तक तेजस्कायिक आदि
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