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प्रज्ञापना सूत्र
पृथ्वीकाय, अप्काय और वायुकाय क्रमशः विशेषाधिक हैं उनसे पर्याप्तक तेजस्कायिक संख्यात गुणा हैं क्योंकि सूक्ष्म अपर्याप्तक संख्यात गुणा हैं।
एएसि णं भंते! सुहुमाणं सुहुम पुढविकाइयाणं सुहुम आउकाइयाणं सुहुम तेउकाइयाणं सुहुम वाउकाइयाणं सुहुम वणस्सइकाइयाणं सुहुम णिओयाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
गोयमा! सव्वत्थोवा सुहम तेउकाइया, सुहुम पुढविकाइया विसेसाहिया, सुहुम आउकाइया विसेसाहिया, सुहुम वाउकाइया विसेसाहिया, सुहुम णिओया असंखिज गुणा, सुहम वणस्सइकाइया अणंत गुणा, सुहमा विसेसाहिया॥१५७॥ .
भावार्थ - हे भगवन्! इन सूक्ष्म, सूक्ष्म पृथ्वीकायिक, सूक्ष्म अप्कायिक, सूक्ष्म तेजस्कायिक, सूक्ष्म वायुकायिक, सूक्ष्म वनस्पतिकायिक, सूक्ष्म निगोद में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं? . उत्तर - हे गौतम! सब से थोड़े सूक्ष्म तेजस्कायिक हैं, उनसे सूक्ष्म पृथ्वीकायिक विशेषाधिक हैं उनसे सूक्ष्म अप्कायिक विशेषाधिक हैं, उनसे सूक्ष्म वायुकायिक विशेषाधिक हैं, उनसे सूक्ष्म निगोद असंख्यात गुणा हैं, उनसे सूक्ष्म वनस्पतिकायिक अनंत गुणा हैं और उनसे सूक्ष्म विशेषाधिक हैं।
विवेचन - काय द्वार में ही सूक्ष्म और बादर की अपेक्षा भी अल्पबहुत्व कहा जाता है। प्रस्तुत सूत्र में सामान्य सूक्ष्म जीवों का अल्प बहुत्व कहा गया है। सबसे थोड़े सूक्ष्म तेजस्कायिक हैं क्योंकि वे असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण हैं। उनसे सूक्ष्म पृथ्वीकायिक विशेषाधिक हैं क्योंकि वे प्रचुर (बहुत) असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण हैं। उनसे सूक्ष्म अप्कायिक विशेषाधिक हैं क्योंकि वे प्रचुरतर असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण हैं, उनसे सूक्ष्म वायुकायिक विशेषाधिक हैं क्योंकि वे भी प्रचुरतम असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण हैं, उनसे सूक्ष्म निगोद असंख्यात गुणा- यहाँ सूक्ष्म का ग्रहण बादर का निषेध करने के लिए है। निगोद (साधारण वनस्पतिकायिक शरीर) को प्रकार के हैं। उनमें सूरण कंद आदि बादर निगोद हैं और सूक्ष्म निगोद सर्वलोक में व्याप्त है। वे सूक्ष्म निगोद प्रत्येक गोले में असंख्याता हैं अत: वे सूक्ष्म वायुकायिक जीवों से असंख्यात गुणा हैं। उनसे सूक्ष्म वनस्पतिकायिक अनंत गुणा हैं क्योंकि प्रत्येक निगोद में अनंत जीव हैं। उनसे सामान्य सूक्ष्म जीव विशेषाधिक हैं क्योंकि सूक्ष्म पृथ्वीकायिक आदि का भी उनमें समावेश है। सूक्ष्म नामकर्म के उदय वाले जीवों को सूक्ष्म वनस्पतिकायिक कहते हैं तथा सूक्ष्म नाम कर्म के उदय वाले जीवों के औदारिक शरीरों को सूक्ष्म निगोद कहते हैं अर्थात् एक बोल में जीवों की गिनती है दूसरे बोल में उन्हीं के औदारिक शरीरों की गिना गया है।
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