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२७० *********
प्रज्ञापना सूत्र
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है कि वह कुछ झुकी हुई है। क्योंकि बीच में उसकी आठ योजन की मोटाई (जाडाई) है तथा साडे बाईस लाख योजन में क्रमश: पतली होती हुई किनारे पर मक्खी के पांख से भी पतली हो गयी है अर्थात् अंगुल के असंख्यातवें भाग की पतली हो गयी है।
प्रश्न - ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी से लोकान्त कितना दूर है ?
उत्तर - यद्यपि सभी शाश्वत वस्तुएं, प्रमाणाङ्गल से नापी जाती है किन्तु ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी से लोकान्त एक योजन की दूरी पर है। यह योजन उत्सेधाङ्गल से लेना चाहिए क्योंकि उस योजन के चौबीस भाग करने पर चौबीसवें भाग में सिद्ध भगवन्तों की अवगाहना बतलाई गयी है। जीवों की अवगाहना उत्सेधाङ्गल से नापी जाती है। अतः तीन सौ तेतीस धनुष बत्तीस अङ्गल (एक हाथ आठ अङ्गुल) की सिद्धों की उत्कृष्ट अवगाहना होती है। वह अवगाहना ऊपर का एक योजन उत्सेधाङ्गुल से लिया जाय तभी ठीक बैठ सकती है।
प्रश्न - क्या सिद्धों का संस्थान होता है ?
उत्तर - छह संस्थानों में से कोई भी संस्थान सिद्धों में नहीं होता है। वे निरंजन-निराकार होते हैं। ग्रन्थों में उनके प्रदेशों का आकार बतलाया गया है क्योंकि मनुष्य ही सिद्ध होता है। इसलिये उनके प्रदेशों का आकार मनुष्य के आकार का होता है। इसलिये उनको नराकार (नर+आकार-नराकार) कहते हैं। अर्थात् निराकार होते हुए भी नराकार (आत्मप्रदेशों का अपेक्षा) होते हैं।
प्रश्न - क्या सिद्धि स्थान में कर्मों के पुद्गल हैं ?
उत्तर - सिद्धि स्थान में कर्मों के पुदगल अवश्य हैं। किन्तु वे कर्म पुद्गल सिद्ध भगवंतों को नहीं लगते हैं। क्योंकि कर्म के पुद्गलों को सकर्मक (कर्म सहित) जीव ही अपनी तरफ खींचता है अकर्मक नहीं। जैसे लावण दुःखती हुई आँख को ही लगती है, स्वस्थ आँख को नहीं तथा जैसे महतरानी राजा के महलों में जाने पर भी रानी नहीं बनती है इसी प्रकार सिद्ध क्षेत्र में सिद्ध भगवान् एवं एकेन्द्रिय जीवों के रहने पर भी सिद्धों के कर्म बन्ध नहीं होते हैं। एकेन्द्रिय जीवों के होते हैं। सिद्ध भगवन्तों के बीच में पृथ्वीकाय आदि पांचों प्रकार के सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव हैं। उनके कर्म बन्ध होता है। शुद्ध चेतन के साथ कर्म रूपी जड़ का बन्ध नहीं होता है। कर्म जड़ हैं अत: जड़ (कर्म) सहित चेतन के साथ ही कर्मों का बन्ध होता है। सिद्ध भगवान् कर्म (जड़) रहित हैं अतः उनके साथ कर्मों का बन्ध नहीं होता है।
॥पण्णवणाए भगवईए बिइयं ठाणपयं समत्तं॥ ॥ प्रज्ञापना सूत्र का द्वितीय स्थान पद समाप्त॥
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