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दूसरा स्थान पद - वैमानिक देवों के स्थान
यह है कि वह चालीस हजार विमानों का, चालीस हजार सामानिकों का और चार गुणा चालीस हजार (एक लाख साठ हजार) आत्मरक्षक देवों का आधिपत्य करता हुआ यावत् विचरण करता है ।
कहि णं भंते! सहस्सार देवाणं पज्जत्तापज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते! सहस्सारदेवा परिवसंति ?
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गोयमा! महासुक्कस्स कप्पस्स उप्पिं सपक्खि सपडिदिसिं जाव उप्पइत्ता एत्थ णं सहस्सारे णामं कप्पे पण्णत्ते । पाइण पडीणायए जहा बंभलोए, णवरं छव्विमाणावास सहस्सा भवतीति मक्खायं । देवा तहेव जाव वडिंसगा जहा ईसाणस्स वडिंसगा । णवरं मझे इत्थ सहस्सार वडिंस जाव विहरंति ।
सहस्सारे इत्थ देविंदे देवराया परिवसइ जहा सणंकुमारे। णवरं छण्हं विमाणावास सहस्साणं, तीसाए सामाणिय साहस्सीणं, चउण्ह य तीसाए आयरक्खदेव साहस्सीणं जाव आहेवच्चं कारेमाणे विहरइ ॥ १२९ ॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्तक और अपर्याप्तक सहस्रार देवों के स्थान कहाँ कहे गये हैं ? हे भगवन् ! सहस्रार देव कहाँ निवास करते हैं ?
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उत्तर - हे गौतम! महाशुक्र कल्प (देवलोक ) के ऊपर समान दिशा और समान विदिशा में यावत् ऊपर जाने पर सहस्रार नामक कल्प कहा गया है जो पूर्व पश्चिम में लम्बा है इत्यादि सारा वर्णन ब्रह्मलोक कल्प की तरह कह देना चाहिये विशेषता यह है कि इसमें छह हजार विमान है ऐसा कहा गया है यावत् अवतंसक ईशान कल्प के अवतंसकों की तरह जानना चाहिए किन्तु उनके मध्य भाग में सहस्रारावतंसक है। यहाँ बहुत से देव यावत् विचरण करते हैं।
यहाँ सहस्रार नाम का देवेन्द्र देवराज निवास करता है इत्यादि सारा वर्णन सनत्कुमारेन्द्र की तरह कह देना चाहिये किन्तु विशेषता यह है कि वह छह हजार विमानों का, तीस हजार सामानिक देवों का और चार गुणा तीस हजार (एक लाख बीस हजार) आत्मरक्षक देवों का आधिपत्य करता हुआ यावत् विचरण करता है ।
कहि णं भंते! आणय-पाणयाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते! आणय - पाणया देवा परिवसंति ?
गोयमा! सहस्सारस्स कप्पस्स उप्पिं सपक्खि सपडिदिसिं जाव उप्पइत्ता एत्थ णं आणय पाणय णामा दुवे कप्पा पण्णत्ता । पाईण पडीणायया उदीण दाहिण वित्थिण्णा, अद्धचंद संठाणसंठिया, अच्चिमालीभासरासिप्पभा, सेसं जहा सणंकुमारे जाव पडिरूवा ।
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