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________________ २३२ प्रज्ञापना सूत्र ************** ************************************************** **************** वक्षस्थल वाले हैं। कडे और बाजूबंदों से मानों भुजाओं को स्तब्ध कर रखा है। अंगद कुण्डल आदि आभूषण उनके कपोलों को सहला रहे हैं, कानों में कर्णपीठ और हाथों में विचित्र आभूषण धारण किये हुए हैं। विचित्र पुष्पमालाएं मस्तक पर शोभायमान हैं। वे कल्याणकारी उत्तम वस्त्र पहने हुए, कल्याणकारी श्रेष्ठ माला और लेपन धारण किये हुए होते हैं। उनका शरीर देदीप्यमान होता है। वे लम्बी माला धारण किये हुए होते हैं तथा दिव्य वर्ण, दिव्य गंध, दिव्य स्पर्श, दिव्य संहनन, दिव्य संस्थान, दिव्य ऋद्धि, दिव्य द्युति, दिव्यप्रभा, दिव्य छाया, दिव्य अर्चि, दिव्य तेज और दिव्य लेश्या से दशों दिशाओं को उद्योतित प्रभासित करते हुए वे वहाँ अपने अपने लाखों विमानावासों का, अपने अपने हजारों सामानिक देवों का, अपने अपने त्रायस्त्रिंशक देवों का, अपने अपने लोकपालों का, सपरिवार अपनी अपनी अग्रमहिषियों का, अपनी अपनी परिषदाओं का, अपनी अपनी सेनाओं का, अपने अपने सेनाधिपतियों का, अपने अपने हजारों आत्म रक्षक देवों का तथा अन्य बहुत से वैमानिक देवों और देवियों का, आधिपत्य अग्रेसरत्व, स्वामित्व, भर्तृत्व, महत्तरत्व, आज्ञा ईश्वरत्व तथा सेनापतित्व करते हुए और कराते हुए तथा पालते हुए और पलवाते हुए निरन्तर होने वाले महान् नाट्य, गीत, वादिन्त्र, तल, ताल, त्रुटित घन मृदंग आदि वाद्यों की ध्वनि के साथ दिव्य कामभोगों को भोगते हुए विचरण करते हैं। प्रश्न - मूल पाठ में "वेमाणिय" शब्द दिया है उसकी व्युत्पत्ति और अर्थ क्या है? उत्तर-विविधं मन्यन्ते उपभुज्यन्ते पुण्य व भिः जीवैः इति विमानानि, तेषु भवा: वैमानिकाः अर्थ - पुण्यवान जीव जहाँ पर अनेक प्रकार से सुख भोगते हैं उनको “विमान" कहते हैं। उन विमानों में देव रूप से उत्पन्न होने वाले जीवों को वैमानिक देव कहते हैं। " कहि णं भंते! सोहम्मग देवाणं पजत्तापज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता? कहि णं भंते! सोहम्मग देवा परिवसंति? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसम रमणिजाओ भूमिभागाओ जाव उड्डे दूरं उप्पइत्ता एत्थ णं सोहम्मे णामं कप्पे पण्णत्ते। पाईण पडीणायए, उदीण दाहिण वित्थिण्णे, अद्धचंद संठाणसंठिए, अच्चिमालि भासरासिवण्णाभे, असंखिजाओ जोयण कोडीओ असंखिजाओ जोयणकोडाकोडीओ आयाम विक्खंभेणं, असंखिज्जाओ जोयणकोडा-कोडीओ परिक्खेवेणं, सव्व रयणामए, अच्छे जाव पडिरूवे। तत्थ णं सोहम्मगदेवाणं बत्तीस विमाणावास सयसहस्सा भवंतीति मक्खायं। ते णं विमाणा सव्व रयणामया अच्छा जाव पडिरूवा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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