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________________ प्रज्ञापना सूत्र ***** * * * * * * * * ************************* ******* * * * * * * * * * * * * * * पयंगदेवा चंचल चल चवल चित्त कीलण दवप्पिया गहिर हसियगीयणच्चणाई वणमाला मेलमउडकुंडल सच्छंदविउव्वियाभरणचारुभूसणधरा, सव्वोउय सुरभि कुसुमसुरइय-पलंब-सोहंत-कंत-वियसंत-चित्त-वणमालरइयवच्छा, कामगमा (कामकामा), कामरूवदेहधारी, णाणाविह वण्ण राग वर वत्थ विचित्त चिल्ललग णियंसणा, विविह देसी णेवत्थ गहियवेसा पमुइय कंदप्प कलह केलि कोलाहलप्पिया हासबोलबहुला, असिमुग्गरसत्तिकुंतहत्था, अणेग मणिरयण विविह-णिज्जुत्त विचित्त चिंधगया, महिड्डिया, महज्जुइया, महायसा, महाबला, महाणुभागा, महासुक्खा, हारविराइयवच्छा, कडय तुडिय थंभिय भुया, अंगय कुंडल मट्ठ गंडयल कण्णपीढधारी, विचित्तहत्थाभरणा, विचित्तमाला-मउलिमउडा, कल्लाणग पवर वत्थपरिहिया, कल्लाणग पवर मल्लाणुलेवणधरा, भासुरबोंदी, पलंब वणमालधरा, दिव्वेणं वण्णेणं, दिव्वेणं गंधेणं, दिव्वेणं फासेणं, दिव्वेणं संघयणेणं, दिव्वेणं संठाणेणं, दिव्वाए इड्डीए, दिव्वाए जुईए, दिव्वाए पभाए, दिव्वाए छायाए, दिव्वाए अच्चीए, दिव्वेणं तेएणं, दिव्वाए लेस्साए दस दिसाओ उज्जोवेमाणा, पभासेमाणा, ते णं तत्थ साणं साणं असंखिज भोमिज णयरावास सयसहस्साणं, साणं साणं सामाणिय साहस्सीणं, साणं साणं अग्गमहिसीणं, साणं साणं परिसाणं, साणं साणं अणियाणं, साणं साणं अणियाहिवईणं, साणं साणं आयरक्ख देव साहस्सीणं, अण्णेसिं च बहूणं वाणमंतराणं देवाण य देवीण य आहेवच्चं, पोरेवच्चं, सामित्तं, भट्टित्तं, महत्तरगत्तं, आणाईसरसेणावच्चं, कारेमाणा, पालेमाणा, महया-हयणट्टगीयवाइयतंतितलतालतुडियघण मुइंगपडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणा विहरंति॥११६॥ ____ कठिन शब्दार्थ - चंचल चल चवल चित्त कीलण दवप्पिया - चंचल (अनवस्थित) और चलचपल (अतिशय चपल) चित्त वाले, क्रीडा और हास्य प्रिय, गहिर हसिय गीय णच्चण रई - गंभीर हास्य, गीत और नृत्य में रत, वणमाला मेलमउड कुंडल-सच्छंद विउव्वियाभरण चारुभूसणधरा - वनमाला, कलंगी, मुकुट, कुण्डल और इच्छानुसार विकुर्वित सुंदर आभूषणों को धारण करने वाले, सव्वोउय सुरभि कुसुम सुरइय पलंब सोहंत कंत विहसंत चित्त वणमालरइयवच्छा - सभी ऋतुओं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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