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प्रज्ञापना सूत्र
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हजार योजन नीचे छोड़ कर शेष एक लाख अट्ठहत्तर हजार योजन में इन दस ही. भवनपतियों के भवन हैं और वे वहीं निवास करते हैं।
यह जो उत्तर दिया गया है वह समुच्चय की अपेक्षा दिया गया है। इसका आशय इस प्रकार समझना चाहिए - इसके पूर्व में भगवती सूत्र शतक दो और उद्देशक आठ तथा शतक सोलह उद्देशक नौ में यह बतलाया गया है कि यहाँ समतल भूमि भाग से चालीस हजार योजन नीचे जाने पर असुरकुमारों के इन्द्र चमरेन्द्र की चमरचंचा राजधानी और बलिन्द्र की बलिचंचा राजधानी है। जीवाजीवाभिगम सूत्र में बतलाया गया है कि सातों नरकों के उनपचास प्रस्तट (प्रतर-पाथड़ा) हैं उनमें रत्नप्रभा के तेरह प्रस्तट हैं। दूसरी नरक के ग्यारह, तीसरी के नौ, चौथी के सात, पांचवीं के पांच, छठी के तीन और सातवीं का एक। इस तरह ये कुल उनपचास प्रस्तट हैं। एक प्रस्तट से दूसरे प्रस्तटं तक बीच में जो खाली जगह (पोलार) है। उसको अन्तर (अन्तराल) कहते हैं। रत्नप्रभा पृथ्वी के जब तेरह प्रस्तट हैं। तो बारह अन्तराल है यह स्वतः ही सिद्ध हो जाता है। एक प्रस्तट की मोटाई तीन हजार योजन की है उसमें एक हजार योजन नीचे और एक हजार योजन ऊपर छोड़ कर बीच के एक हजार योजन में नैरयिक जीव निवास करते हैं।
उस प्रस्तट के बाद दूसरे प्रस्तट तक बीच का अन्तराल गणित के अनुसार ग्यारह हजार पांचसों तीयाँसी एक बटा तीन (११५८३२) योजन का मोटा होता है। उस अन्तराल में भवनपति देव रहते हैं।
इस प्रकार दो प्रस्तट और दो अन्तराल की मोटाई २९१६६० योजन की आती है। इसके बाद तीन हजार योजन मोटाई वाला तीसरा प्रस्तट आता है ( २९१६६२ + ३०००=३२१६६२) इसके बाद ३२१६६० योजन के बाद तीसरा अन्तराल प्रारम्भ होता है। जो ४३७५० योजन तक गया है। इस दृष्टि से असुर कुमार जाति के देव इस तीसरे अन्तराल में वसते हैं। इसके बाद चौथा प्रस्तट तीन हजार योजन का आता है। फिर चौथा अन्तराल आता है उसमें दूसरे भवनपति नागकुमार जाति के देवों के भवन हैं। इस प्रकार इस गणित के अनुसार १४५८३२ योजन के बाद पांचवाँ अन्तराल आता है। इसी क्रम से छठा, सातवाँ आदि अन्तराल गिनते हुए बारहवें अन्तराल में दसवीं जाति के भवनपति स्तनितकुमार देव रहते हैं। जो कि यहाँ से १६३४१६० योजन नीचे समतल भूमि से नीचे जाने पर बारहवाँ अन्तराल आता है। उस अन्तराल में स्तनितकुमार देव निवास करते हैं। .
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