________________
२१०
प्रज्ञापना सूत्र
******************************
*****
*akshaakakkakk
**
kalatak
**
*
*
*
**
*
*
*
*
*
*
णीलाणु-राग-वसणा विज अग्गी यहंति दीवा य। संझाणु राग वसणा वाउकुमारा मुणेयव्वा॥११॥११५॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्तक और अपर्याप्तक उत्तर दिशा के सुवर्णकुमार देवों के स्थान कहाँ कहे गये हैं ? हे भगवन्! उत्तर के सुवर्णकुमार देव कहाँ रहते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के यावत् मध्य भाग में उत्तर दिशा के सुवर्णकुमार देवों के ३४ लाख भवन हैं। ऐसा कहा गया है। वे भवन बाहर से गोल हैं इत्यादि यावत् यहाँ बहुत से उत्तर के सुवर्णकुमार देव रहते हैं। वे महाऋद्धि वाले यावत् विचरण करते हैं। यहाँ वेणुदाली नामक सुवर्णकुमार देवों का इन्द्र, सुवर्णकुमार देवों का राजा रहता है। वह महान् ऋद्धि वाला है। शेष सारा वर्णन नागकुमारों की तरह जानना चाहिये। जिस प्रकार सुवर्णकुमार देवों के इन्द्र की वक्तव्यता कही है उसी प्रकार शेष चौदह इन्द्रों की भी कहनी चाहिये। विशेषता यह है 'कि उनके भवनों की संख्या, इन्द्रों के नामों में, उनके वर्गों में तथा परिधानों (वस्त्रों) में अन्तर है
जो इन गाथाओं के अनुसार जान लेना चाहिए_असुरकुमारों के चौसठ लाख, नागकुमारों के चौरासी लाख, सुवर्णकुमारों के बहोत्तर लाख, वायुकुमारों के छियानवें लाख, द्वीपकुमारों के, दिशाकुमारों के, उदधिकुमारों के, विद्युत्कुमारों के, स्तनितकुमारों और अग्निकुमारों के इन छहों युगलों के प्रत्येक के ७६ लाख - ७६ लाख भवन हैं ॥१-२॥
अर्थात् तात्पर्य यह है कि द्वीपकुमार से लेकर स्तनितकुमार तक छह जाति के भवनपति देवों के दक्षिण दिशा के और उत्तर दिशा के दोनों दिशाओं के मिल कर ७६ लाख ७६ लाख भवन हैं। अर्थात् इन छह के दक्षिण दिशा में ४० लाख ४० लाख और उत्तर दिशा में ३६ लाख ३६ लाख भवन हैं। इस प्रकार दोनों दिशों के मिलाने से ७६ लाख ७६ लाख भवन हो जाते हैं। (३६+४०=७६)
दक्षिण दिशा के असुरकुमारों के ३४ लाख, नागकुमारों के ४४ लाख, सुवर्णकुमारों के ३८ लाख, वायुकुमारों के ५० लाख। द्वीपकुमारों, दिशाकुमारों, उदधिकुमारों विद्युत्कुमारों, स्तनितकुमारों और अग्निकुमारों के प्रत्येक के ४० लाख-४० लाख भवन हैं ॥३॥
उत्तर दिशा के असुरकुमारों के ३० लाख, नागकुमारों के ४० लाख, सुवर्णकुमारों के ३४ लाख, वायुकुमारों के ४६ लाख। द्वीपकुमारों, दिशाकुमारों, उदधिकुमारों, विद्युत्कुमारों, स्तनितकुमारों और अग्निकुमारों के प्रत्येक के ३६ लाख ३६ लाख भवन हैं ॥४॥
दक्षिण दिशा के असुरेन्द्र के ६४ हजार और उत्तर दिशा के असुरेन्द्र के ६० हजार सामानिक देव हैं। असुरेन्द्र को छोड़ कर शेष दक्षिण दिशा और उत्तर दिशा के इन्द्रों के प्रत्येक के छह छह
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org