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दूसरा स्थान पद - भवनवासी देव स्थान
भगवती सूत्र शतक तीन उद्देशक एक में त्रायस्त्रिंशक देवों का वर्णन आया है उसमें टीकाकार ने लिखा है कि त्रयस्त्रिंशक देव इन्द्र के लिये अमात्य (मंत्रीपन) पुरोहित के समान शान्तिकर्म करने वाले गुरुस्थानीय मान्य और पूज्य होते हैं ।
नोट - त्रायस्त्रिंशक देवों को "दोगुंदक देव" भी कहते हैं। जैसा कि उत्तराध्ययन सूत्र के उन्नीसवें अध्ययन में मृगापुत्र के लिए और इक्कीसवें अध्ययन में समुद्रपाल के लिये भोग भोगते समय दोदक देव की उपमा दी है।
४. पारिषद्य - जो देव इन्द्र के मित्र सरीखे होते हैं, वे पारिषद्य कहलाते हैं।
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५. आत्मरक्षक - जो देव शस्त्र लेकर इन्द्र के पीछे खड़े रहते हैं वे आत्म रक्षक कहलाते हैं। यद्यपि इन्द्र को किसी प्रकार की तकलीफ या अनिष्ट होने की सम्भावना नहीं है तथापि आत्म रक्षक देव अपना कर्त्तव्य पालन करने के लिए हर समय हाथ में शस्त्र लेकर खड़े रहते हैं ।
६. लोकपाल - सीमा (सरहद ) की रक्षा करने वाले देव लोकपाल कहलाते हैं ।
७. अनीक - जो देव सैनिक अथवा सेना नायक का काम करते हैं वे अनीक कहलाते हैं ।
८. प्रकीर्णक- जो देव नगर निवासी अथवा साधारण जनता की तरह रहते हैं वे प्रकीर्णक. कहलाते हैं।
९. आभियोगिक - जो देव दास के समान होते हैं वे आभियोगिक (सेवक) कहलाते हैं ।
१०. किल्विषिक अन्त्यज ( चाण्डाल) के समान जो देव होते हैं वे किल्विषिक कहलाते हैं। वाचक मुख्य उमास्वाति ने भी अपने तत्त्वार्थ सूत्र के चौथे अध्याय में इस प्रकार लिखा है - इन्द्रसामानिकत्रायस्त्रिंशपारिषद्यात्मरक्षलोकपालानीकप्रकीर्णकाभियोग्यकिल्विषिकाश्चैकशः ॥ ४ ॥
. किन्तु आगे के सूत्र में इस प्रकार लिखा है -
त्रायस्त्रिंशलोकपालवर्ज्या व्यंतरज्योतिष्काः ॥५॥
अर्थ ऊपर देवों के दस भेद बतलाये गये हैं । उनमें से त्रायस्त्रिंशक और लोकपाल ये दो भेद वाणव्यंतर और ज्योतिषी देवों में नहीं पाये जाते हैं । तात्पर्य यह है कि भवनपति और वैमानिक देवों में दस दस भेद होते हैं । किन्तु वाणव्यन्तर और ज्योतिषी देवों में आठ-आठ भेद ही पाये जाते हैं ।
कहि णं भंते! उत्तरिल्लाणं असुरकुमाराणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता? कहि णं भंते! उत्तरिल्ला असुरकुमारा देवा परिवसंति ?
गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयण-सयसहस्सबाहल्लाए उवरि एगं जोयणसहस्सं ओगाहित्ता हिट्ठा चेगं जोयणसहस्सं वज्जित्ता मज्झे अट्ठहुत्तरे जोयणसयसहस्से, एत्थ णं उत्तरिल्लाणं
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