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दूसरा स्थान पद - भवनवासी देव स्थान
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पृथ्वी के ऊपर एक हजार योजन अवगाहन कर और नीचे भी एक हजार योजन छोड़ कर एक लाख अठहत्तर हजार योजन मध्य भाग में भवनवासी देवों के सात करोड़ बहत्तर लाख भवनावास हैं।
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यह बात सामान्य रूप से कही गई है अथवा शास्त्रकार की ऐसी शैली होने से इस प्रकार का समुच्चय पाठ दे दिया गया है क्योंकि भवनवासियों के भवन कहाँ पर हैं इसका उत्तर भगवती सूत्र दिया गया है। वह पाठ इस प्रकार है
में
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"अहे रयणप्पभाए पुढवीए चत्तालीसं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता एत्थ णं चमरस्स असुरदिंस्स असुरकुमार रण्णो चमरचंचा णामं रायहाणी पण्णत्ता । "
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(भगवती सूत्र शतक - २ उद्देशक ८) इसी प्रकार भगवती सूत्र शतक १६ उद्देशक ९ में भी पाठ आया है"कहिण्णं भंते! बलिस्स वइरोयणिंदस्स वइरोयणरण्णो सभा सुहम्मा पण्णत्ता ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं तिरियमसंखेज्जे जहेव चमरस्स ।"
अर्थ - १. इस रत्नप्रभा पृथ्वी के समतल भूमि भाग से चालीस हजार योजन नीचे जाने पर असुरों के इन्द्र, असुरों के राजा चमर की चमरचंचा नाम की राजधानी है। इसी प्रकार - वैरोचनेन्द्र, वैरोचनराजा बलि की बलिचंचा राजधानी भी इस रत्नप्रभा पृथ्वी के समतल भूमि भाग से चालीस हजार योजन नीचे जाने पर हैं।
आशय यह है कि चमरेन्द्र और बलिन्द्र की राजधानी यहाँ से चालीस हजार योजन नीचे है। पहली रत्नप्रभा पृथ्वी जो कि एक लाख अस्सी हजार योजन की मोटी है उसके तेरह प्रस्तट और बारह अन्तर (अन्तराल) हैं। तीन हजार योजन का एक प्रस्तट होता है ११५८३ योजन का एक अन्तराल हैं। इस गणित के हिसाब से तीसरे अन्तराल में असुरकुमार जाति के देव हैं। इस क्रम से नागकुमार आदि चौथे आदि अन्तरालों में हैं। तात्पर्य यह है कि बारह अन्तरालों में से ऊपर के दो अन्तराल खाली हैं। तीसरे से लेकर बारहवें अन्तराल तक इन दस अन्तरालों में दस भवनपति जाति के देव रहते हैं।
नोट - थोकड़े की पुरानी प्रतियों में इस प्रकार का वर्णन देखने में आता है कि बारह अन्तरालों में से पहला व बारहवां अन्तराल खाली है बीच के दस अन्तरालों में भवनपति देव रहते हैं परन्तु यह वर्णन आगमानुकूल नहीं है।
कहि णं भंते! असुरकुमाराणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि भंते! असुरकुमारा देवा परिवसंति ?
गोयमा ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए उवरिं
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