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प्रज्ञापना सूत्र
लवण समुद्र में छप्पन अन्तरद्वीप हैं उनमें युगलिक मनुष्य रहते हैं। इस अपेक्षा से समुद्र में भी मनुष्यों का निवास माना गया है।
प्रश्न- क्या सभी केवलीज्ञानी केवली समुद्घात करते हैं ?
उत्तर - नहीं। सभी केवलज्ञानी केवल समुद्घात नहीं करते किन्तु जिन केवलज्ञानी भगवन्तों के नाम गोत्र और वेदनीय ये तीन कर्म अधिक रह जाते हैं और आयुष्य कर्म कम रह जाता है। तब इन तीन कर्मों को आयुष्य कर्म के बराबर करने के लिए केवली भगवान् केवली समुद्घात करते हैं ।
जिस मुनिराज का आयुष्य सिर्फ कुछ न्यून छह महिना बाकी रह जाता है उस समय उन्हें केवलज्ञान होवे, उन केवलज्ञानी मुनिराजों में से कोई कोई केवली केवली समुद्घात करते हैं, सभी नहीं । इसलिए केवली समुद्घात करके सिद्ध होने वाले सिद्धों से केवली समुद्घात किये बिना सिद्ध होने वाले सिद्ध बहुत ज्यादा अधिक हैं।
प्रश्न- केवली समुद्घात में कितना समय लगता है ?
उत्तर - केवली समुद्घात में आठ समय लगते हैं । पहले समय में केवली भगवान् अपने शरीर प्रमाण चौदह राजु तक अपने शरीर की लम्बाई रूप दण्ड करते हैं, दूसरे समय में कपाट, तीसरे समय में मन्थान (मथानी) करके चौथे समय में बीच के अन्तरालों को पूरित कर चौथे समय में आत्म प्रदेशों को सम्पूर्ण लोक परिमाण कर देते हैं । अर्थात् लोकाकाश के असंख्यात प्रदेश हैं और एक जीव के भी. लोकाकाश जितने ही असंख्यात प्रदेश हैं इसलिये एक एक लोकाकाश प्रदेश पर एक एक आत्म प्रदेश फैला देता है। इसी अपेक्षा मनुष्य का समुद्घात सर्व लोक प्रमाण कहा है। जिस प्रकार आत्म-प्रदेशों को फैलाया है उसके उल्टे क्रम से आत्म-प्रदेशों को संकुचित कर लेता है । अर्थात् पांचवें समय में अन्तराल के आत्म प्रदेशों को, छठे समय में मन्थान को, सातवें समय में कपाट को और आठवें समय में दण्ड को संकुचित कर के स्वशरीरस्थ हो जाता है। नवमें समय में पूर्ववत् (शरीरस्थ) अवस्था हो जाती है।
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प्रश्न - क्या केवली भगवान् केवली समुद्घात करते हैं? या हो जाता है ?
उत्तर
छद्मस्थ का कोई भी कार्य असंख्यात के समय रूप अन्तरमुहूर्त से पहले नहीं होता किन्तु केवली भगवान् इन आठ समयों में केवली समुद्धात कर लेते हैं। क्योंकि मूल पाठ में "करेइ" शब्द दिया है। इसलिए केवली भगवान् केवली समुद्घात करते हैं, अपने आप नहीं होता है।
प्रश्न- क्या केवली समुद्घात करने से केवली भगवान् को कोई कष्ट होता है ?
उत्तर - नहीं, केवली समुद्घात करने से केवली भगवान् को किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता है।
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