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________________ प्रथम प्रज्ञापना पद - प्रस्तावना ***************** ********************** ******* **** *-*-42400 **** *** श्यामाचार्य (कालकाचार्य) इस प्रकार की निगोद की व्याख्या करने वाले हैं। यह सुनकर इन्द्र (शकेन्द्र) भरत क्षेत्र में आया और श्यामाचार्य के मुख से निगोद की व्याख्या सुनकर बड़ा प्रसन्न हुआ। मुनि पुण्यविजयजी ने आचार्य श्यामाचार्य के विषय में लिखा है कि पण्णवणा सूत्र के मूल पाठ में किसी भी स्थान पर उसके कर्ता (रचयिता-उद्धर्ता) का कुछ भी निर्देश नहीं किया है। परन्तु उसके प्रारम्भ में मंगलाचरण के बाद दो गाथाएँ दी गयी हैं। जिनकी व्याख्या आचार्य हरिभद्र और आचार्य मलयगिरि ने भी की है। तथापि इन दोनों गाथाओं को प्रक्षिप्त (अन्य कर्तृक) माना है। उन गाथाओं में आर्य श्यामाचार्य को इस पण्णवणा सूत्र का कर्ता माना है और इतना ऊँचा स्थान दिया है कि श्यामाचार्य को कई जगह "भगवान्' शब्द से उल्लिखित किया है। नन्दीसूत्र की पट्टावली में "वंदिमो हारियं च सामजं" अर्थात् हारित गोत्रीय श्यामाचार्य को हम वन्दना करते हैं। पट्टावलियों पर से कालकाचार्य तीन हुए हैं ऐसा सिद्ध होता है। खरतर गच्छ की धर्म सागरीय पट्टावली में लिखा है- "आद्यः प्रज्ञापनाकृत् इन्द्रस्य अग्रे निगोदविचारवक्ता श्यामाचार्यापरनामा। स तु वीरात् ३७६ वर्षेर्जातः" । अर्थात् - इन्द्र के सामने निगोद की व्याख्या करने वाले कालकाचार्य (जिनका दूसरा नाम श्यामाचार्य है) वे प्रज्ञापना सूत्र के करने वाले हैं और वे प्रथम कालकाचार्य हैं। वे वीर निर्वाण संवत् ३७६ में स्वर्गवासी हुए थे। उपरोक्त सब प्रमाणों से यह निष्कर्ष निकलता है कि पण्णवणा सूत्र के उद्धर्ता (रचयिता) प्रथम कालकाचार्य (श्यामाचार्य) ही हैं। बारह उपांग सूत्रों में जीवाजीवाभिगम सूत्र के बाद पण्णवणा (प्रज्ञापना) सूत्र आता है। अंग सूत्रों में चौथे अंग सूत्र समवायांग का यह उपांग है। समवायांग सूत्र में जीव, अजीव, स्व समय, परसमय, लोक अलोक आदि विषयों का वर्णन किया गया है। एक एक पदार्थ की वृद्धि करते हुए सौ पदार्थों तक का वर्णन समवायांग सूत्र में है। इन्हीं विषयों का वर्णन प्रज्ञापना सूत्र में विशेष रूप से किया गया है। इसमें ३६ पद हैं। एक एक पद में एक-एक विषय का वर्णन है। आगमों में चार प्रकार के अनुयोगों का निरूपण किया गया है- १. द्रव्यानुयोग २. गणितानुयोग ३. चरणकरणानुयोग और ४. धर्मकथानुयोग। द्रव्यानुयोग में जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, काल द्रव्य आदि का वर्णन आता है। गणितानुयोग में मनुष्य, तिर्यंच, देव, नारक आदि की गिनती आदि का वर्णन होता है। चरणकरणानुयोग में चारित्र संबंधी और धर्मकथानुयोग में कथा द्वारा धर्म के उपदेश आदि का वर्णन आता है। प्रज्ञापना सूत्र में मुख्य रूप से द्रव्यानुयोग का वर्णन है। इसके सिवाय कहीं कहीं पर चरणकरणानुयोग और गणितानुयोग का विषय भी आया है। प्रथम पद का वर्णन प्रारंभ करने से पूर्व सूत्रकार मंगलाचरण करते हैं - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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