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प्रज्ञापना सूत्र
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उत्तर - हे गौतम! पंकप्रभा पृथ्वी की मोटाई एक लाख बीस हजार योजन है। उसमें ऊपर के भाग से एक हजार योजन प्रवेश कर नीचे एक हजार योजन छोड़ कर शेष एक लाख अठारह हजार योजन प्रमाण मध्य भाग में पंकप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों के दस लाख नरकावास हैं, ऐसा कहा गया है। वे नरक अंदर से गोल, बाहर से चौकोण और नीचे से क्षुरप्र-उस्तुरे के आकार वाले हैं। वे प्रकाश के अभाव में निरन्तर अंधकार वाले, ग्रह, चन्द्रमा, सूर्य, नक्षत्र तारे आदि ज्योतिष्कों की प्रभा से रहित हैं। उनके तलभाग मेद, चर्बी, मवाद के पटल, रुधिर और मांस के कीचड के लेप से लिप्त, अशुचि अपवित्र, बीभत्स अत्यंत दुर्गन्धित, कापोत वर्ण की अग्नि जैसे रंग के कर्कश (कठोर) स्पर्शवाले, दुःसह और अशुभ नरक हैं। उन नरकों में अशुभ वेदनाएँ हैं। इनमें पंकप्रभा पृथ्वी के पर्याप्तक और अपर्याप्तक नैरयिकों के स्थान कहे गये हैं । वे उपपात की अपेक्षा लोक के असंख्यातवें भाग में, समुद्घात की अपेक्षा लोक के असंख्यातवें भाग में और स्व स्थान की अपेक्षा लोक के असंख्यातवें भाग में हैं। वहाँ पंकप्रभा पृथ्वी के बहुत से नैरयिक निवास करते हैं । हे आयुष्मन् श्रमणो ! वे काले, काली आभा वाले, गंभीर रोमाञ्च वाले, भीम (भयंकर), उत्कट त्रासजनक और अतीव काले वर्ण के कहे गये. हैं। वे नित्य भयभीत, सदैव त्रस्त, नित्य परस्पर एक दूसरे को त्रास पहुँचाए हुए, सदैव उद्विग्न तथा नित्य अत्यंत अशुभ रूप और संबद्ध-निरंतर नरक भय का प्रत्यक्ष अनुभव करते हुए रहते हैं ।
कहि णं भंते! धूमप्पभा पुढवी णेरइयाणं पज्जत्तापज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता ? कहिणं भंते! धूमप्पभा पुढवी णेरड्या परिवसंति ? गोयमा ! धूमप्पभा पुढवीए अट्ठारसुत्तर जोयण सयसहस्सबाहल्लाए उवरि एगं जोयणसहस्सं ओगाहित्ता हेट्ठा चेगं जोयणसहस्सं वजित्ता मज्झे सोलसुत्तरे जोयणसयसहस्से, एत्ध णं धूमप्पभा पुढवी णेरइयाणं तिणि णिरयावास - सयसहस्सा भवंतीति मक्खायं । ते णं णरगा अंतो वट्टा, बाहिं चउरंसा, अहे खुरप्पसंठाणसंठिया, णिच्चंधयार तमसा, ववगय गह-चंद-सूरणक्खत्तजोइसियप्पहा, मेद - वसा - पूयपडल- रुहिर-मंसचिक्खिल्ललित्ताणु लेवणतला, असुई वीसा, परमदुब्भिगंधा, काउअगणिवण्णाभा, कक्खडफासा, दुरहियासा, असुभा णरगा, असुभा णरगेसु, वेयणाओ, एत्थ णं धूमप्पभा पुढवी णेरइयाणं पज्जत्तापज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता । उववाएणं लोयस्स असंखिज्जइभागे, समुग्धाएणं लोयस्स असंखिज्जइभागे, सट्टाणेणं लोयस्स असंखिज्जइभागे । तत्थ णं बहवे तमप्पभापुढवीणेरड्या परिवसंति । काला कालोभासा, गंभीरलोमहरिसा भीमा उत्तासणगा परमकिण्हा वण्णेणं पण्णत्ता समणाउसो ! । ते णं तत्थ णिच्चं भीया, णिच्चं तत्था,
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