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________________ दूसरा स्थान पद - नैरयिक स्थान १७७ ***************** *** ** *********** ********** * ***--*-*-*-*-************************** हुए, सदैव उद्विग्न तथा नित्य अत्यंत अशुभ रूप और संबद्ध-निरंतर नरक भय का प्रत्यक्ष अनुभव करते हुए रहते हैं। कहि णं भंते! सक्करप्पभा पुढवी जेरइयाणं पजत्तापज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता? कहि णं भंते! सक्करप्पभा पुढवी णेरइया परिवसंति? गोयमा! सक्करप्पभा पुढवीए बत्तीसुत्तर-जोयण सयसहस्स बाहल्लाए उवरि एगं जोयणसहस्सं ओगाहित्ता हेट्ठा चेगं जोयण-सहस्सं वज्जित्ता मज्झे तीसत्तरे जोयणसयसहस्से एत्थ णं सक्करप्पभा पुढवी । णेरइयाणं पणवीसं णिरयावास सयसहस्सा हवंतीति मक्खायं। ते णं णरगा अंतो वट्टा, बाहिं चउरंसा, अहे खुरप्पसंठाणसंठिया, णिच्चंधयारतमसा, ववगय-गह-चंदसूर-णक्खत्त-जोइसियप्पहा, मेद-वसा-पूयपडल-रुहिर-मंसचिक्खिल्ललित्ताणुलेवणतला, असुई वीसा, परमदुब्भिगंधा, काउअगणिवण्णाभा, कक्खडफासा, दुरहियासा, असुभा णरगा, असुभा णरगेसु वेयणाओ, एत्थ णं सक्करप्पभा पुढवी णेरइयाणं पजत्तापजत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता। उववाएणं लोयस्स असंखिज्जइभागे, समुग्घाएणं लोयस्स असंखिजइभागे, सट्ठाणेणं लोयस्स असंखिजइभागे। तत्थ णं बहवे सक्करप्पभा पुढवी जेरइया परिवसंति। काला, कालोभासा, गंभीरलोमहरिसा, भीमा, उत्तासणगा, परमकिण्हा वण्णेणं पण्णत्ता समणाउसो!। ते णं तत्थ णिच्चं भीया, णिच्चं तत्था, णिच्चं तसिया, णिच्चं उव्विग्गा, णिच्चं परममसुह-संबद्ध णरगभयं पच्चणुभवमाणा विहरंति॥९८॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्तक और अपर्याप्तक शर्कराप्रभा नामक दूसरी पृथ्वी (नरक) के नैरयिकों के स्थान कहां कहे गये हैं ? हे भगवन् ! शर्कराप्रभा पृथ्वी के नैरयिक कहां निवास करते हैं ? उत्तर - हे गौतम! एक लाख बत्तीस हजार योजन मोटी शर्कराप्रभा पृथ्वी के ऊपर एक हजार योजन अवगाहन करने पर तथा नीचे भी एक हजार योजन छोड़ कर शेष एक लाख तीस हजार योजन प्रमाण मध्य भाग में शर्कराप्रभा पृथ्वी के पच्चीस लाख नरकावास हैं। ऐसा कहा गया है। वे नरक अंदर से गोल, बाहर से चौकोण और नीचे से क्षुरप्र-उस्तुरे के आकार वाले हैं। वे प्रकाश के अभाव में सतत अंधकार वाले, ग्रह, चन्द्रमा, सूर्य, नक्षत्र, तारे आदि ज्योतिष्कों की प्रभा से रहित हैं। उनके तलभाग में मेद, चर्बी, मवाद के पटल, रुधिर और मांस के कीचड के लेप से लिप्त, अशुचि अपवित्र, बीभत्स अत्यंत दुर्गन्धित, कापोत वर्ण की अग्नि जैसे रंग के, कर्कश (कठोर) स्पर्शवाले, दुःसह और अशुभ नरक हैं। उन नरकों में अशुभ वेदनाएँ हैं। इनमें शर्कराप्रभा पृथ्वी के पर्याप्तक और अपर्याप्तक नैरयिकों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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