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________________ ********* दूसरा स्थान पद पृथ्वीकाय स्थान - शिखर युक्त पर्वत, प्रारभार-कुछ झुके हुए पर्वत, विजय-कच्छ सुकच्छ आदि, वक्षस्कार - विद्युतप्रभ आदि पर्वत, वर्ष - क्षेत्र - भरत एरवत आदि, वर्षधर क्षेत्रों की मर्यादा करने वाले हिमवान महा हिमवान आदि पर्वत, बेला - समुद्र के पानी का प्रवाह जहाँ जाकर वापिस लौट आता है वहाँ का पानी रहित क्षेत्र (रमणभूमि) वेदिका जम्बू द्वीप की जगती आदि की वेदिकाएँ, द्वार - विजय वैजयन्त आदि तथा द्वीप और समुद्रों का समुद्रतल इन सब स्थानों में बादर पृथ्वीकायिक पर्याप्तक जीवों के स्थान कहे गये हैं । प्रश्न- स्वस्थान किसे कहते हैं ? उत्तर - जीवन के प्रारंभ से लेकर अन्त तक जहाँ जीव रहते हैं उसे स्व स्थान कहते हैं । जीवों का उपपात, समुद्घात आदि अवस्थाओं के अभाव में जो शरीरस्थ रहना होता है वही उनका स्वस्थान कहलाता है। १५३ प्रश्न - उपपात स्थान किसे कहते हैं ? उत्तर - पूर्वभव के आयुष्य को पूर्ण करके ऋजु गति से उसी समय में एवं वक्र गति से दो तीन समयों में उत्पत्ति स्थान पर पहुँचे हो ऐसे वाटे बहते (मार्ग में चलते हुए) जीव उस नये स्थान के उपपात में ग्रहण किये गये हैं। जीव जहाँ एक भव से छूट कर दूसरे भव में जन्म लेने से पूर्व बीच में स्वस्थानाभिमुख होकर रहते हैं उसे उपपात स्थान कहते हैं। निष्कर्ष यह है कि जीव मरकर अगले भव में जाता है उसको गति कहते हैं और जिस स्थान से आता है उसे आगति कहते हैं। जैसे कि एकेन्द्रिय जीव मरकर औदारिक के दस दण्डकों में जाता है। यह उसकी गति हुई । नरक गति को छोड़कर शेष तेईस दण्डकों से जीव मरकर एकेन्द्रिय में आ सकते हैं। यह उसकी आगति हुई । यहाँ पर उपपात का अर्थ आगति से है। इसीलिये पृथ्वीकाय का उपपात तेईस दण्डकों से लिया गया है। Jain Education International प्रश्न- समुद्घात स्थान किसे कहते हैं ? उत्तर - आत्म प्रदेशों में वेदना आदि की प्रबलता से जो विशेष प्रकार का स्पन्दन (कम्पन) होता है उसे समुद्घात कहते हैं । समुद्घात करते समय जीव के प्रदेश जहाँ रहते हैं, जितने आकाश प्रदेश में रहते हैं, उसे समुद्घात स्थान कहते हैं । इस भव के आयुष्य के अन्तर्मुहूर्त्त शेष रहते हुए जिस जीव ने मारणान्तिक समुद्घात एवं वली समुद्घात की है वे समुद्घात में गिने जाते हैं । पर्याप्त बादर पृथ्वीकाय जीवों का उपपात, समुद्घात और स्वस्थानलोक के असंख्यातवें भाग में है। प्रश्न - भगवती सूत्र आदि में गौतम स्वामी ने प्रश्न किये हैं और श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने उत्तर दिये हैं किन्तु यह पण्णवणा सूत्र आर्य श्यामाचार्य की स्वयं की रचना है फिर इसमें प्रश्नोत्तर किस प्रकार हो सकते हैं ? For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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