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प्रथम प्रज्ञापना पद - देव जीव प्रज्ञापना
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भृत्यवत् उपचरन्ति केचित व्यन्तरा इति। मनुष्येभ्यो विगतान्तरा। यदि वा विविधमन्तरं शैलान्तर, कदरान्तरं वनान्तरं वा अथवा आश्रयरूप० येषां ते व्यन्तराः। ___प्राकृतत्वाच्च सूत्रे वाणमन्तरा इति पाठ, यदि वा 'वानमन्तराः' इति पदसंस्कारः तत्र इयं व्युत्पतिः। वनानाम् अन्तराणि वनान्तराणि तेषु भावा: वनमन्तराः।
__ अर्थ - यहाँ अन्तर का अर्थ आकाश है वह आश्रय रूप है। अनेक प्रकार के भवन और नगर जिनके रहने का स्थान है उनको व्यन्तर देव कहते हैं अथवा यहाँ अन्तर शब्द का अर्थ फर्क है अतः मनुष्यों के साथ जिनका अन्तर (व्यवधान) नहीं पड़ता है उनको व्यन्तर कहते हैं। क्योंकि बहुत से व्यन्तर देव, चक्रवर्ती, वासुदेव आदि की सेवा नौकर की तरह करते हैं इसलिए मनुष्यों के साथ अन्तर (व्यवधान) नहीं रहता है इसलिए उनको व्यन्तर कहते हैं अथवा पहाड़, गुफा, वन आदि इनका आश्रय (स्थान) है उनको व्यन्तर कहते हैं। यह प्राकृत भाषा होने के कारण मूल पाठ में वाणमन्तर शब्द दिया है। इस शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार है कि जो वनों (जंगलों) में रहते हैं।
इस रत्नप्रभा पृथ्वी का प्रथमकाण्ड रत्नकाण्ड कहलाता है वह एक हजार योजन का मोटा है उसमें से १०० योजन ऊपर और १०० योजन नीचे छोड़कर बीच के आठ सौ योजन में द्वीपों के नीचे इन वाणव्यंतरों के भवन हैं तथा तिरछा लोक में इनके नगर हैं जैसे कि जम्बूद्वीप के विजय द्वार के स्वामी विजयदेव की राजधानी यहाँ से असंख्य द्वीप समुद्र उल्लंघन करने के बाद असंख्यातवें जम्बूद्वीप नाम के द्वीप में है। वह बारह हजार योजन लम्बी चौड़ी है। वाणव्यन्तरों के आवास तीनों लोक में हैं। ऊर्ध्वलोक में पण्डकवन आदि में है।
प्रश्न - ज्योतिषी किसे कहते हैं ? उत्तर - जो देव ज्योति यानी प्रकाश करते हैं वे ज्योतिषी कहलाते हैं।
ज्योतिषी शब्द व्युत्पत्ति इस प्रकार है - "द्योतयन्ति-प्रकाशयन्ति जगत् इति ज्योतींषिविमानानि। यदि वा द्योतयन्ति-शिरोमुकुटोपगूहिभिः प्रभामण्डलकल्पैः सूर्यादिमण्डलैः प्रकाशयन्ति इति ज्योतिषो-देवाः सूर्यादयः तथाहि-सूर्यस्य सूर्याकारं मुकुटाग्रभागे चिह्न चन्द्रस्य चन्द्राकारं नक्षत्रस्य नक्षत्राकारं ग्रहस्य ग्रहाकारं तारकस्य तारकाकारं तैः प्रकाशयन्ति इति, आह च तत्त्वार्थभाष्यकृत"द्योतयन्ति इति ज्योतींषि-विमानानि तेषु भवा ज्योतिष्काः, यदि वा ज्योतिषो-देवा: ज्योतिष एव ज्योतिष्काः, मुकुटैः शिरोमुकुटोपगूहिभिः प्रभामण्डलैरुज्वलैः सूर्यचन्द्रग्रहनक्षत्रतारकाणां मण्डलैः यथास्वं चिह्नः विराजमाना द्युतिमन्तो ज्योतिष्का भवन्ति इति।" ___ अर्थ - जो जगत् को प्रकाशित करते हैं उन्हें ज्योतिषी कहते हैं अथवा सिर पर धारण किये हुए मुकुट की प्रभा से एवं सूर्यादि मण्डलों से प्रकाश करते हैं उनको ज्योतिषी देव कहते हैं। तत्त्वार्थ सूत्र
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