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प्रज्ञापना सूत्र
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चारित्र आर्य कहे हैं। इस प्रकार ऋद्धि अप्राप्त आर्य कहे हैं। यह आर्य का वर्णन हुआ। इस प्रकार कर्म भूमि मनुष्यों, गर्भज मनुष्यों, मनुष्यों का निरूपण हुआ।
विवेचन - प्रश्न - वीतराग चारित्र आर्य किसे कहते हैं ?
उत्तर - जिस चारित्र में राग का सद्भाव न हो या वीतराग पुरुष (ग्यारहवें से चौदहवें गुणस्थानवर्ती) का जो चारित्र हो उसे वीतराग चारित्र कहते हैं। जो वीतराग चारित्र से आर्य है उसे वीतराग चारित्र आर्य कहते हैं।
प्रश्न - चारित्र के कितने भेद हैं ? उत्तर - चारित्र के पांच भेद हैं। वे इस प्रकार हैं - १. सामायिक चारित्र २. छेदोपस्थापनीय चारित्र ३. परिहार विशुद्धि चारित्र ४. सूक्ष्म सम्पराय चारित्र ५. यथाख्यात चारित्र। इन पांच चारित्रों का अर्थ इस प्रकार है -
१. सामायिक चारित्र - सामायिक शब्द का शब्दार्थ इस प्रकार है-"समः रागद्वेष रहित परिणामस्य आय: प्राप्ति समाय अथवा समानाम ज्ञान, दर्शन, चरित्राणाम आय: लाभः इति समाय अथवा समः शत्रुमित्रेषु समः भाव तस्य आयः इति समाय। समाय एव सामायिक।"
अर्थ - सम अर्थात् राग द्वेष रहित परिणाम की प्राप्ति होना अथवा ज्ञान, दर्शन, चारित्र का लाभ होना तथा शत्रु व मित्र के ऊपर समान परिणाम की प्राप्ति होना समाय कहलाता है।
समाय शब्द से ही सामायिक शब्द बना है इसलिए समाय व सामायिक दोनों शब्दों का अर्थ एक ही है।
सम अर्थात् राग द्वेष रहित आत्मा के प्रतिक्षण अपूर्व निर्जरा से होने वाली आत्मविशुद्धि (समभाव) का प्राप्त होना सामायिक है।
भवाटवी (भव अर्थात् संसार अटवी अर्थात् जंगल के भ्रमण से पैदा होने वाले क्लेश को प्रतिक्षण नाश करने वाले चिन्तामणि, कामधेनु एवं कल्पवृक्ष के सुखों से भी बढ़ कर, निरुपम सुख देने वाले, ऐसी ज्ञान दर्शन चारित्र पर्यायों को प्राप्त कराने वाले, राग द्वेष रहित आत्मा के क्रियानुष्ठान को सामायिक चारित्र कहते हैं।
सर्व सावध व्यापार का त्याग करना एवं निरवद्य व्यापार का सेवन करना सामायिक चारित्र है।
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