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प्रज्ञापना सूत्र
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प्रश्न - मुकुली कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
उत्तर - मुकुली अनेक प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - दिव्याक, गोनस, कषाधिक, व्यतिकुल, चित्रली, मण्डली, माली, अहि, अहिशलाका, वासपताका। इसी प्रकार के अन्य जितने भी सर्प हैं उन्हें मुकुली समझना चाहिये। इस प्रकार मुकुली (सर्प) कहे गये हैं। इस प्रकार अहि सों का वर्णन हुआ।
प्रश्न - अजगर कितने प्रकार के कहे गये हैं?
उत्तर - अजगर एक ही आकार प्रकार के कहे गये हैं। इस प्रकार अजगर कहे गये हैं। ये प्रायः विष रहित होते हैं।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में उर:परिसर्प तिर्यंच पंचेन्द्रिय के भेदों का कथन किया गया है।
से किं तं आसालिया? कहि णं भंते! आसालिया संमुच्छइ? गोयमा! अंतोमणुस्स खेत्ते अड्डाइजेसु दीवेसु, णिव्वाघाएणं पण्णरससु कम्मभूमिसु, वाघायं पडुच्च पंचसु महाविदेहेसु, चक्कवट्टिखंधावारेसु, वासुदेवखंधावारेसु, बलदेवखंधावारेसु, . मंडलियखंधावारेसु, महामंडलियखंधावारेसु, गामणिवेसेसु, णगरणिवेसेसु, णिगमणिवेसेसु, खेडणिवेसेसु, कब्बडणिवेसेसु, मडंबणिवेसेसु, दोणमुहणिवेसेसु, पट्टणणिवेसेसु, आगरणिवेसेसु, आसमणिवेसेसु, संवाहणिवेसेसु, रायहाणीणिवेसेसु, एएसि णं चेव विणासेसु एत्थ णं आसालिया संमुच्छइ। जहण्णेणं अंगुलस्स असंखिज्जइभागमित्ताए ओगाहणाए उक्कोसेणं बारसजोयणाई तयणुरूवं च णं विक्खंभबाहल्लेणं भूमिं दालित्ता णं समुढेइ, असण्णी मिच्छादिट्ठी अण्णाणी अंतोमुहत्तअद्धाउया चेव कालं करेइ। से तं आसालिया॥५४॥
___ कठिन शब्दार्थ - संमुच्छइ - सम्मूर्च्छित-सम्मूर्छिम रूप से उत्पन्न होता है, णिव्वाधाएणं - निर्व्याघात से, वाघायं - व्याघात को, पडुच्च - प्रतीत्य (अपेक्षा), चक्कवट्टिखंधावारेसु - चक्रवर्ती के स्कन्धावारों (सैनिक छावनियों)में, गामणिवेसेसु - ग्राम निवेशों में, तयणुरूवं - तदनुरूप, विक्खंभबाहल्लेणं - विष्कम्भ (विस्तार) और बाहल्य (मोटाई), दालित्ता - फोड कर।
भावार्थ - प्रश्न - आसालिका कितने प्रकार के होते हैं ? हे भगवन् ! आसालिका क्या सम्मूर्छिम रूप से उत्पन्न होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम ! मनुष्य क्षेत्र के अंदर ढाई द्वीपों में निर्व्याघात रूप से पन्द्रह कर्मभूमियों में, व्याघात की अपेक्षा पांच महाविदेह क्षेत्रों में अथवा चक्रवर्ती के स्कन्धावारों (सैनिक छावनियों) में या
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