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नैरयिक ६. तमः प्रभा पृथ्वी नैरयिक ७ तमस्तमः प्रभा पृथ्वी नैरयिक। वे संक्षेप से दो प्रकार के कहे गए हैं - पर्याप्त और अपर्याप्त । यह नैरयिकों की प्ररूपणा हुई।
विवेचन प्रश्न नैरयिक किसे कहते हैं ?
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प्रथम प्रज्ञापना पद - पंचेन्द्रिय जीव प्रज्ञापना
उत्तर - नैरयिक शब्द का शास्त्रीय भाषा में शब्द है " णिरय" जिसकी व्युत्पत्ति इस प्रकार की गई है - 'निर्+अयः । निर्-निर्गतम् - अविद्यमानम, अयः - इष्टफलं कर्म येभ्यस्ते निरयास्तेषु भवा नैरयिका क्लिष्टसत्त्वविशेषाः ।'
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अर्थ - यहाँ पर 'अय' शब्द का अर्थ पुण्य किया है। जिन जीवों का इष्ट फल देने वाला पुण्य अभी विद्यमान नहीं है उनको नैरयिक कहते हैं ।
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प्रश्न- रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा आदि नाम किस कारण से दिये गये हैं ?
उत्तर - पहली नरक में रत्नकाण्ड है जिससे वहां रत्नों की प्रभा पड़ती है, इसलिए उसे रत्नप्रभा कहते हैं। दूसरी नरक में शर्करा अर्थात् तीखे पत्थरों के टुकड़ों की अधिकता है इसलिए उसे शर्कराप्रभा कहते हैं। तीसरी नरक में. बालुका अर्थात् बालू रेत अधिक है। वह भड़भुंजा की भाड़ से अनन्तगुणा अधिक तपती है इसलिए उसे बालुकाप्रभा कहते हैं। चौथी नरक में रक्त मांस के कीचड की अधिकता है इसलिए उसे पंकप्रभा कहते हैं। पांचवी नरक में धूम ( धूंआ) अधिक है। वह सोमिल खार से भी अनन्त गुणा अधिक खारा है इसलिए उसे धूमप्रभा कहते हैं। छठी नरक में तमः (अंधकार) की अधिकता है, इसलिए उसे तमः प्रभा कहते हैं। सातवीं नरक में महातमस् अर्थात् गाढ़ अन्धकार है इसलिए उसे महातमः प्रभा कहते हैं । इसको तमस्तमः प्रभा भी कहते हैं जिसका अर्थ है जहां घोर अंधकार ही अन्धकार है।
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तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीव
से किं तं पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिया ? पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिया तिविहा पण्णत्ता तंजहा - १. जलयर पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिया य २. थलयर पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिया य ३. खहयर पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिया य ॥ ४९ ॥
भावार्थ प्रश्न पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
उत्तर - पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक तीन प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं १. जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक २. स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक ३. खेचर ( खहचर) पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक |
से किं तं जलयर पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिया ? जलयर पंचिंदिय तिरिक्ख
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